Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 127
________________ सर्वज्ञ की सिद्धि १३१ ये 'स्वभाव, काल और देश से विप्रकृष्ट पदार्थ' यहाँ धर्मी (पक्ष) है। 'किसी के प्रत्यक्ष हैं यह साध्य है। यहाँ 'प्रत्यक्ष' शब्द का अर्थ 'प्रत्यक्षज्ञान के विषय' यह विवक्षित है, क्योंकि विषयी (ज्ञान) के धर्म (जानना) का विषय में भी उपचार होता है । 'अनुमान से जाने जाते हैं' यह हेतु है । 'अग्नि श्रादि' दृष्टान्त हैं। 'अग्नि आदि' दृष्टान्त में 'प्रनुमान से जाने जाते हैं। यह हेतु 'किसी के प्रत्यक्ष हैं' इस साध्य के साथ पाया जाता है । अत: वह परमाणु वगैरह सूक्ष्मादि पदार्थों में भी किसी की प्रत्यक्षता को अवश्य सिद्ध करता है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार अग्नि प्रादि अनुमान से जाने जाते है। अतएव वे किसी के प्रत्यक्ष भी होते हैं उसी प्रकार सूक्ष्मादि प्रतीद्रिय पदार्थ चूंकि हम लोगों के द्वारा अनुमान से जाने जाते हैं । अतएष वे किसी के प्रत्यक्ष भी हैं और जिसके प्रत्यक्ष हैं वही सर्वज्ञ है । परमाणु शादि में 'अनुमान से जाने जाते हैं। यह हेतु प्रसिद्ध भी नहीं है क्योंकि उनको अनुमान से जानने में किसी को विवाद नहीं है। अर्थात-समी मत वाले इन पदार्थों को अनुमेय मानते हैं ! शंका-सूक्ष्मादि पदार्थों को प्रत्यक्ष सिद्ध करने के द्वारा किसी के सम्पूर्ण पदार्थो का प्रत्यक्ष ज्ञान हो, यह हम' मान सकते हैं। परन्तु वह अतीन्द्रिय है-इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं रखता है, यह कैसे ? समाधान- इस प्रकार-यदि ज्ञान इन्द्रियजन्य हो तो सम्पूर्ण पदार्थों को जानने वाला नहीं हो सकता है। क्योंकि इन्द्रियाँ अपने योग्य विषय (सन्निहित और वर्तमान अर्थ) में ही ज्ञान को उत्पन्न कर सकती हैं। और सूक्ष्मादि पदार्थ इन्द्रियों के योग्य विषय नहीं हैं । अतः वह सम्पूर्ण पदार्थविषयिक ज्ञान प्रतीन्द्रिय ही है- इन्द्रियों की अपेक्षा से रहित अतीन्द्रिय है, यह बात सिद्ध हो जाती है। इसप्रकार से सर्वश को मानने में किसी भी सर्वज्ञवादी को विवाद नहीं है । जैसा कि दूसरे भी कहते है-'पुण्य-पापादिक किसी के प्रत्यक्ष हैं। क्योंकि वे प्रमेय हैं।'

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