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न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां षष्ठः परिच्छेदः ।
विरुद्धहेत्वाभास का स्वरूप--
বিথীকালি দিনাবিলাক্ষাদ্বী বিৗ s অবিলী शब्दः कृतकत्वात् ॥२९॥
अर्थ--साध्य से विपरीत (विपक्ष) के साथ जिस हेतु की व्याप्ति हो, उस हेतु को विरुद्धहेत्वाभास कहते हैं। जैसे शब्द अपरिणामी (नित्य) होता है, क्योंकि वह कृतक (किया गया) है। यहां किया जाना हेतु अपने साध्यभूत नित्यत्व से विपरीत अनित्यत्व के साथ रहता है, इसलिये यह विरुद्ध हेत्वाभास है ॥२६॥
___ संस्कृतार्थ- साध्यविरुद्धेन (विपक्षण) यह निश्चिताविनाभावो हेतुः विरुद्धो हेत्वाभासो निरूप्यते । यथा-अपिरणामी शब्दः कृतकत्वात् । अनास्य हेतोरपरिणामित्व विरुद्धेन परिणामित्वेन सह व्याप्तिः विद्यते, अतोऽयं हेतुः विरुद्धहेत्वाभासः सुसिद्धः ॥२६॥
विशेषार्थ - इस अनुमान में अपरिणामित्व साध्य है, परन्तु कृतकत्व हेतु उसके साथ व्याप्ति नहीं रखता। किन्तु उससे उल्टे परिणाभीपने के साथ व्याप्ति रखता है, इसलिये यह विरुद्ध हेत्वाभास है ॥२६॥
अनेकान्तिकहेत्वाभास का स्वरूपविपक्षे ऽ प्याविरुद्धवृत्तिरनकान्तिकः ॥३०॥
पर्थ-जो हेतु पक्ष और सपक्ष में रहता हुमा विपक्ष (साध्य के अभाव) में भी रहता है उसे अनेकान्तिक हेत्वाभास' कहते हैं ॥३०॥
संस्कृतार्थ-पक्षे, सपो वा विद्यमानोऽपि विपक्षवृत्तिः हेतुरनैकान्तिको हेत्वाभासः॥३०॥