Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां षष्ठः परिच्छेदः। ११३ अर्थ-रागी, द्वेषी और अज्ञानी मनुष्य के वचनों से उत्पन्न हुये आगम को भागमाभास कहते हैं। ___संस्कृतार्थ-रागिणो, द्वेषिणोऽ ज्ञानिनो वा मानवस्य वचनेभ्यः समुत्पन्नः प्रागमः प्रागमाभासो विज्ञेयः ॥५१॥ भागमाभास का उदाहरणত্মা লানীৰ ফাই: দানি আৰ কাকা । अर्थ-जैसे कि-"हे बालको ! दौड़ो, नदी के किनारे लड्डुओं के ढेर लगे हैं' यह वचन रागोक्त होने से आगमाभास है। संस्कृतार्थ-नधास्तीरे मोदकराशयः सन्ति, धावध्वं माणवकाः इति वचनमागमाभासो विद्यते रागेणोक्तत्वात् ॥५२॥ विशेषार्थ-किसी व्यक्ति को बालक व्याकुल कर रहे थे, उसने अपना पिण्ड छुड़ाने के लिये बहकावने का वचन बोला कि 'नदी के किनारे लड्डुओं के ढेर लगे हैं, हे बालको! तुम जाओ और उठाओ, ऐसा कह कर उनको नदी के किनारे चला दिया। इस प्रकार अपने स्वार्थसाधन को यह वचन कहा गया, इसलिये यह आगमाभास है। आगमाभास का उदाहरणान्तरअंगल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च ॥५३॥ अर्थ-अंगुलि के अग्रभाग पर हाथियों के सौ समुदाय रहते हैं । यहाँ अपने आगम' की वासना में लीन सांख्यमती प्रत्यक्ष और अनुमान से विरुद्ध 'सभी वस्तुएं सभी जगह हैं "ऐसा मानता हुआ पूर्वोक्त वचन कहता है, यह अनाप्त का वचन होने से आगमाभास है। संस्कृतार्थ-'अंगुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते' इति वचनमागमाभासो विद्यते, प्रत्यक्षेण बांधितत्वाद् असम्भवत्वाद्वा ॥५३॥ पूर्वोक्त दोनों उदाहरणों के आगमाभास होने में हेतुविसम्वादात् ॥४५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136