Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 106
________________ ११० श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे आकाश असिद्धसाध्यसाधनव्य तिरेक है, क्योंकि वह अमूतिक भी है और पौरुषेय भी है, इसलिये आकाश का साध्य और साधन दोनों से व्यतिरेक नहीं हुआ ॥४४॥ संस्कृतार्थ-व्यतिरेकदृष्टान्ताभासो ऽ पि त्रिविधः। प्रसिद्धसाध्याभावः, प्रसिद्धसाधनाभावः, असिद्धोभयाभावश्चेति । तद्यथा-शब्दः अपौरु यः अमूर्तत्वात्, अत्रानुमाने परमाणुः साध्याभावविकलदृष्टान्तः, तस्यामूर्तत्वेऽपि पौरुषेयत्वाभावात् । अथ चात्रैवानुमाने इन्द्रियसुख साधनाभावविकलदृष्टान्तः, तस्य पौरुषेयत्वेऽपि मूर्तत्वाभावात् । किञ्चिात्रैवानुमाने आकाशम् उभयाभावविकलदृष्टान्तः, आकाशस्य पौरुषेयत्वा भावान्मूर्तत्वाभावाच्च ॥४४॥ विशेषार्थ —जो दृष्टान्त व्यतिरेकव्याप्ति अर्थात् साध्य के प्रभाव में साधन का अभाव दिखा कर दिया जाता है उसे व्यतिरेकदृष्टान्त कहते हैं । उस व्यतिरेक व्याप्ति में दो वस्तुएँ होती हैं, एक साध्याभाव दूसरा साधनाभाद। फिर जिस दृष्टान्त में साध्याभाव नहीं होगा वह साध्य से, जिसमें साधनाभाव नहीं होगा वह साधन से तथा. जिसमें दोनों नहीं होंगे वह उभय से रहित कहा जावेगा ।।४४।। व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरणांतरविपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामू तन्नापौरुषेयम् ॥४५॥ अर्थ-पूर्वोक्त अनुमान में व्यतिरेक दिखाते हुये 'जो अमूर्त नहीं होता वह अपौरुषेय भी नहीं होता' इस प्रकार उलटा व्यतिरेक दिखा देना भी व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है। यहां जो अपौरुषेय नहीं होता, वह अमूर्तिक नहीं होता, ऐसा कहना था सो उल्टा कहा, इसलिये व्यतिरेकदृष्टान्ताभास हुमा ॥४५॥ संस्कृतार्थ- यत्र साधनाभावमुखेन साध्याभावः प्रदर्यते सो ऽ पि व्यतिरेकदृष्टान्ताभासो भवति । तद्यथा-यन्नामूतं तमा

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