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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे--...
ऽपि साध्यमिणि तन्निर्णयस्य कर्तुमशक्यत्वात् ॥ ३८॥
केवल उदाहरणप्रयोग से सन्देह होने का स्पष्टीकरणकुतो ऽ न्यथोपनयनिगमने ॥ ३९ ॥
अर्थ-यदि उदाहरण के प्रयोग से सन्देह नहीं होता है तो उपनय मौर निगमन का प्रयोग क्यों किया जाता? इससे निश्चय होता है कि उदाहरणमात्र के प्रयोग से संशय होता है ।। ३६ ॥
संस्कृतार्थ- केवलोदाहरणप्रयोगस्य संशयजनकत्वाभावे उपनय-.... निगमनप्रयोगः किमर्थं विधीयते ? अतो निश्चीयते यदुदाहरणमात्रप्रयोगात्संशयोऽ वश्यं जायते ।। ३६ ॥
उपनय और निगमन को अनुमानाङ्ग न होने का स्पष्टीकरण
न च ते तदंगे, साध्यमिणि हेतुसाध्ययो बचनादेवासंशयात् ॥ ४०॥
अर्थ- उपनय और निगमन भी अनुमान के अङ्ग नहीं है, क्योंकि हेतु और साध्य के बोलने से ही साध्यधर्म वाले धर्मी ( पक्ष ) में संदेह मिट जाता है ॥ ४० ॥
संस्कृतार्थ - -ननूपय निगमनयोरप्यनुमानाङ्गत्वमेव, तदप्रयोगे : निःसंशयसाध्यसम्वित्तेरयोगादिति चेन्न हेतुसाध्ययोः प्रयोगादेव साध्यधार्मिणि संशयस्य निराकृतत्वात् उपनयनिगमनयोरनुमानाङ्गत्वाभावात् ।४०।
अनुमानप्रयोग में केवल हेतु की आवश्यकता और उदाहरण प्रादि .. की अनावश्यकता--.
স্বলজ্বল অ অ qজালাল আব ফাই:... तदुपयोगात ॥४१ ॥