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न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां षष्ठः परिच्छेदः ।
पक्षाभासस्वरूपम् , पक्षाभास का स्वरूपतनानिष्टादिः पक्षाभासः ॥ १२॥ अर्थ-अनिष्ट, बाधित और सिद्ध पक्ष को पक्षाभास कहते हैं । संस्कृतार्थ-अनिष्टो, बाधितः, सिद्धश्च पक्ष: पक्षाभासः प्रोच्यते । अनिष्टपक्षाभास का उदाहरणअनिष्टो मीमांसकत्यानित्यः शब्दः । १३ ।
अर्थ-मीमांसक की अपेक्षा 'शब्द अनित्य है' यह पक्ष अनिष्टपक्षाभास है। क्योंकि मीमांसक शब्द को नित्य मानता है, अनित्य मानना उसके अनिष्ट है ॥ १३ ॥
संस्कृतार्थ-मीमांसकेन शब्दो नित्यो मतः । अतस्तस्य 'शब्दोऽ नित्यः' इति कथनम् अनिष्ट: पक्षाभासो जायते ।। १३ ॥
सिद्धपक्षाभासोदाहरणम् , सिद्धपक्षाभास का उदाहरणसिद्धः श्रावणः शब्दः ॥ १४ ॥
अर्थ—'शब्द, कर्ण इन्द्रिय का विषय होता है' यह पक्ष सिद्ध नाम का पक्षाभास है । क्योंकि सुनने में पाया सो श्रावण सिद्ध है ही फिर शब्द को पक्ष बना कर सिद्ध करना निरर्थक है।
संस्कृतार्थ—'शब्दः श्रावणः इति पक्षः सिद्धपक्षाभासो विज्ञेयः। यतः शब्दः श्रुतः, अतः श्रावणः सिद्ध एव विद्यते, पुनः पक्ष मत्वा सिद्धकरणं निरर्थकमेव ॥ १४ ॥
बाधितपक्षाभासभेदः, बाधितपक्षाभास के भेदबाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकवचनः ॥ १५ ॥
अर्थ-बाधितपक्षाभास के पाँच भेद हैं । प्रत्यक्षबाधित, अनुमानबाधित, प्रागमबाधित, लोकबाधित वा स्ववचनबाधित ।