Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 55
________________ न्यायशास्त्रे सुबोषटीकायां तृतीयः परिच्छेदः । पावश्यकता होगी, जिससे गगनतल में पलने वाली बड़ी भारी अनवस्था चली जावेगी अर्थात् उस अनवस्था का कहीं पर अन्त नहीं मावेगा ।। ३६ ॥ व्याप्ति के स्मरण के लिये भी उदाहरण की अनावश्यकतानापि व्याप्तिस्मरणार्थ, तथाविषहेतुप्रयोगादेव तत्स्मृतः ॥३७॥ अर्थ-व्याप्ति का स्मरण कराने के लिये भी उदाहरण का प्रयोग करना कार्यकारी नहीं है, क्योंकि अविनाभाव स्वरूप हेतु के प्रयोग से ही व्याप्ति का स्मरण हो जाता है ॥ ३७॥ संस्कृतार्थ-ननु व्याप्तिस्मरणार्थम् उदाहरणप्रयोगस्य समीचीनत्वमस्त्येवेति चेन्न साध्याविनाभावत्वापन्नस्य हेतोः प्रयोगादेव व्याप्तिस्मरणसंसिद्धेः ।। ३.७ ॥ विशेषार्थ- पूर्वानुभूत पदार्थ का ही स्मरण होता है । अतः यदि व्याप्ति पूर्वानुभूत रहेगी तो हेतुप्रयोग से ही उसका स्मरण हो जावेगा। और जिसने कभी व्याप्ति का अनुभव किया ही नहीं उसके लिये तो सौ पार भी दृष्टान्त कहा जाय परन्तु वह कभी भी व्याप्ति का स्मारक नहीं होगा । इसलिये ब्याप्ति के स्मरणार्थ भी उदाहरण का प्रयोग प्रावश्यक नहीं ॥ ३७॥ उपनय और निगमन के प्रयोग विना उदाहरणप्रयोग से हानिলংঘফ্রিীযাল মিলিকাি বহাল জ্বাল अर्थ- उपनय और निगमन के विना यदि केवल उदाहरण का प्रयोग किया जावेगा तो साध्य धर्मवाले धर्मी (पक्ष ) में साध्य और सावन के सिद्ध करने में सन्देह करा देगा ॥ ३८ ॥ संस्कृतार्थ- केवलं प्रयुज्या मान तदुदाहरणं साध्यविशिष्टे धर्मिणि জানুন বিশ্রী কবি। বৃঘিদিলি বন্যস্নাঘলৗহ

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