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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे
प्रमाणफल की प्रमाण से अभिन्नता का समर्थन--
यः अमिमोते स एव निवृत्ताज्ञानो जहात्यादत्ते उपेक्षते... चेति प्रतीतेः ॥३॥
अर्थ-जो जानता है, उसी का अज्ञान दूर होता है, वही किसी वस्तु को छोड़ता अथवा ग्रहण करता है या मध्यस्थ हो जाता है। इसलिये एक ज्ञाता की अपेक्षा से प्रमाण और प्रमाणफल दोनों अभिन्न हैं, तथा प्रमाण और उसके फल की भेदप्रतीति होती है, इसलिये दोनों भिन्न हैं ॥३॥
संस्कृतार्थ-तद्धि पमाणफलम् एकप्रमातृसम्बन्धापेक्षया कथञ्चिप्रमाणादभिन्नं विद्यते। तद्यथा-यः आत्मा पदार्थ जानाति, स एक पदार्थविषयिकाज्ञानरहितः सन् पदार्थ त्यजरि, गृह णाति, उपेक्षते चेति प्रतीतेः ॥३॥
इति पञ्चमः परिच्छेदः समाप्तः ।