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६४ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे
अर्थ—'साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम्' इस सूत्र से कहा गया अनुमान का लक्षण ही स्वार्थानुमान का लक्षण है ।
संस्कृतार्थ-परोपदेशमनपेक्ष्य स्वयमेव निश्चितात् धूमादिसाधनात् पर्वतादौ धर्मिणि बयादेः साध्यस्य यद् विज्ञानं जायते तत्स्वार्थानुमानं निगवते ।
परार्थानुमानस्य लक्षणम्, परार्थानुमान का लक्षणपरार्थं तु तदर्थपरामशिवचनाज्जातम् ॥५१॥
अर्थ-- स्वार्थानुमान के विषय, साध्य और साधन को कहने वाले वचनों से उत्पन्न हुये ज्ञान को परार्थानुमान कहते हैं।
संस्कृतार्थ-स्वार्थानुमानगोचरार्थप्रतिपादकवचनेभ्यः समुत्पन्नं यत्साधनज्ञानं तन्निमित्तिकं साध्य विज्ञानं परार्थानुमानं निगवते ॥५१॥
विशेषार्थ-किसी पुरुष को स्वार्थानुमान हुआ कि यहाँ धूम है; इसलिए अग्नि अवश्य होगी, क्योंकि अग्नि के बिना धूम हो ही नहीं सकता। फिर वह अपने शिष्य को समझाने के लिये कहता है कि जहां धूम होता है वहाँ अग्नि अवश्य होती है । इसी प्रकार यहाँ धूम है इसीलिये यहाँ भी अग्नि होना आवश्यक है । इतने से वह शिष्य समझ लेता है । और उस समय उसे जो ज्ञान होता है, उसी को परार्णानुमान कहते हैं।
क्योंकि परार्थानुमान का लक्षण घट गया। गुरु को स्वार्थानुमान था और उसके विषय थे साध्य (अग्नि) और साधन (घूम)। उन्हीं को गुरु ने कहा, तव गुरु के वचनों से शिष्य को साध्य का साधन से शान हुमा ५१॥
परार्थानुमानप्रतिपादक बचन के परार्थानुमान पनातहमनमपि तदेतुत्वात् ॥११॥