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न्यायशास्त्र सुबोधटीकायां तृतीयः परिच्छेदः । वादी को ही इष्ट होता है तो इष्ट विशेषण वादी की ही अपेक्षा है, प्रतिवादी की अपेक्षा नहीं ॥ २० ॥
संस्कृतार्थ-साध्यप्रज्ञापनविषयिणी इच्छा वादिन एष भवति न प्रतिवादिनः । अतः साध्ये इष्टविशेषणं बादिनः अपेक्षातः एच विखते ॥२०॥
साध्यस्य निर्णयः, साध्य का निर्णय-. साध्यं धर्मः पचित्तद्विशिष्टो वा पी॥ २१ ॥
अर्थ-व्याप्तिप्रयोग के समय 'धर्म' साध्य होता है और अनुमानप्रयोग के समय 'धर्म से युक्त धर्मी' भी साध्य होता है ॥ २१ ॥
संस्कृतार्थ-व्याप्तिकालापेक्षया धर्म एव साध्यो भवति । परन्तु अनुमानप्रयोगापेक्षया धर्मविशिष्टो धर्मी साध्यत्वेन प्रयुज्यते ॥ २१ ॥
धर्मिणो नामान्तरम् , धर्मी का नामान्तरपक्ष इति यावत् ॥ २२ ॥
अर्थ-उसी धर्म को पक्ष भी कहते हैं। पक्ष इति धर्मिणः एव नामान्तरम् ॥ २२ ॥
पक्ष की प्रसिद्धता या लक्षणप्रसिद्धो धमी ॥ २३ ॥
अर्थ-वर्मी ( पक्ष ) प्रसिद्ध होता है। प्रवस्तुस्वरूप या कल्पित नहीं ॥ २३ ॥
___ संस्कृतार्थ--धर्मी (पक्षः) प्रसिद्धो विद्यते, प्रवस्तुस्वरूपः, कल्पितो वा नो विद्यते ॥ २३ ॥
- विशेषणार्थ-धर्मी ( पक्ष ) की प्रसिद्धि तीन तरह से होती है। प्रमाण से, विकल्प से और प्रमाणविकल्प से ॥ २३ ॥