Book Title: Pariksha Mukha
Author(s): Manikyanandiswami, Mohanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 43
________________ न्यायशास्त्रे सुबोषटीकायां तृतीयः परिच्छेदः। ४७ सहभावनियमलक्षणम् , सहभावनियम का लक्षणसहचारिणो याप्यध्यापकयोश्च सहभावः ॥ १३ ॥ अर्थ-सदा साथ रहने वालों, तथा व्याप्य और व्यापक में जो अविनाभाव सम्बन्ध होता है उसे सहभावनियम नामक अभिनाभावसम्बन्ध कहते हैं ॥ १३ ॥ __संस्कृतार्थ–सहचारिणो ाप्यव्यापकयोश्चाविनामाव: सहभावनियमाविनामाव: प्रोच्यते । यथा रूपरसयो व्याप्यव्यापकयोश्च सहभावनियमो ऽ विनामावो विद्यते ॥ १३ ॥ विशेषार्थ-रूप और रस सदा साथ रहते हैं। वृक्षत्व व्यापक है और शिशपात्व व्याप्य है । जो अधिक देश में रहता है वह व्यापक कह-7 लाता और जो स्वल्पदेश में रहता है वह व्याप्य कहलाता है ॥ १३ ॥ क्रममावनियमलक्षणम् , क्रमभावनियम का लक्षणपूर्वोतरचारिणोः कार्यकारणयोश्च क्रममावः ॥ १४ ॥ अर्थ-पूर्वचर और उत्तरचर में तथा कार्य और कारण में जो अबिनाभाव सम्बन्ध होता है उसे क्रमभावनियम अविनाभाव सम्बन्ध कहते हैं ॥ १४ ॥ संस्कृतार्थ- पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोश्चाविनाभावः क्रमभावनियमाविनाभावःप्रोच्यते । यथा कृतिकोदयशकटोदययोः घूमानलयोश्च क्रमभावनियमोऽविनाभावो विद्यते ।। १४ ॥ विशेषार्थ- कृतिका का उदय अन्तर्मुहर्त पहले होता है और रोहिणी का उदय पीछे होता है, इसलिये इन दोनों में क्रमभाव माना जाता है। इसी प्रकार अग्नि के बाद में धूम होता है, इसलिये अग्नि और धूम में भी क्रमाभाव अविनाभाव संबंध माना जाता है। इसका दूसरा नाम अन्तरभावनियम' भी है ।। १४ ॥

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