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सातवाँ सर्ग
यों हर मन्दिर
चैत्यालय में,
बही ।
धर्मामृत की रसधार साक्षात् तीर्थ सी ज्ञात हुई, तीर्थकर की अवतार - मही ॥
यों नहीं मात्र उस 'कुण्ड ग्राम' - में ही उत्सव की धूम रही। देवेन्द्रपुरी तक उस अवसर -- में थी उन्मद सी भूम रही ||
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अतएव शीघ्र ही 'कुण्ड ग्राम' - की ओर सुरों के नाथ चले । गन्धर्व, अप्सरा, गज, तुरंग, वृषभ भी साथ चले ॥
नर्तक, रथ,
इस सात भाँति की सेना ने, जो गमन समय जय नाद किया । उसने हर देव तथा देवी -- के मन को अति श्राहाद दिया ||
'उर्वशी' 'मेनका' 'रम्भा' सब, सुरराज संग सस्नेह चलीं । निज दिव्य बधाई देने को, सज धज 'त्रिशला' के गेहू चलीं ॥
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