Book Title: Param Jyoti Mahavir
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Fulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore

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Page 351
________________ ६०६ परम ज्योति महावीर कुलकर-महान् पुरुष प्रजा को मार्ग बताते हैं, इन्हें मनुः भी कहते हैं । प्रत्येक अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी की कर्मभूमि की आदि में तीर्थकरों के जन्म से पहिले होते हैं । इस भरत क्षेत्र के गत तीसरे काल में जब पल्य का आठवाँ भाग शेष रहा तब कुलकर एक दूसरे के पीछे क्रमशः १६ हुये। नाभि-वर्तमान अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र के चौदहवें कुलकर श्री ऋषभदेव के पिता । बाहुबलि-श्री ऋषभदेव के पुत्र । भरत-श्री ऋषभदेव के पुत्र, चक्रवर्ती । बलदेव-प्रत्येक अवसर्पिणी उत्सपिणी के दुखमा सुखमा काल में होते हैं । वर्तमान अवस पिणी काल में भरत क्षेत्र में ६ हुये। विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दीमित्र, पद्म (राम) बल्देव । रामचन्द्र पाठवें बलभद्र, मांगीतुंगी से मोक्ष गये । हनुमान-१८ वे कामदेव, मांगीतुंगी से मोक्ष, रामचंद्र के समय में विद्याधर (वानरवंशी)। सीता-श्री रामचन्द्र की परम शीलवती भार्या, जिसने रावण के द्वारा हरी जाने पर भी शील की रक्षा की, अन्त में अर्यिका हो १६ वें स्वर्ग गयी। रावण-वर्तमान अवसर्पिणी काल के मरत क्षेत्र के ८ प्रतिनारायण, सीता को हरण कर तीसरे नर्क गये ।

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