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परम ज्योति महावीर
कुलकर-महान् पुरुष प्रजा को मार्ग बताते हैं, इन्हें मनुः भी कहते हैं । प्रत्येक अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी की कर्मभूमि की आदि में तीर्थकरों के जन्म से पहिले होते हैं । इस भरत क्षेत्र के गत तीसरे काल में जब पल्य का आठवाँ भाग शेष रहा तब कुलकर एक दूसरे के पीछे क्रमशः १६ हुये।
नाभि-वर्तमान अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र के चौदहवें कुलकर श्री ऋषभदेव के पिता ।
बाहुबलि-श्री ऋषभदेव के पुत्र ।
भरत-श्री ऋषभदेव के पुत्र, चक्रवर्ती ।
बलदेव-प्रत्येक अवसर्पिणी उत्सपिणी के दुखमा सुखमा काल में होते हैं । वर्तमान अवस पिणी काल में भरत क्षेत्र में ६ हुये। विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दीमित्र, पद्म (राम) बल्देव ।
रामचन्द्र पाठवें बलभद्र, मांगीतुंगी से मोक्ष गये ।
हनुमान-१८ वे कामदेव, मांगीतुंगी से मोक्ष, रामचंद्र के समय में विद्याधर (वानरवंशी)।
सीता-श्री रामचन्द्र की परम शीलवती भार्या, जिसने रावण के द्वारा हरी जाने पर भी शील की रक्षा की, अन्त में अर्यिका हो १६ वें स्वर्ग गयी।
रावण-वर्तमान अवसर्पिणी काल के मरत क्षेत्र के ८ प्रतिनारायण, सीता को हरण कर तीसरे नर्क गये ।