Book Title: Param Jyoti Mahavir
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Fulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore

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Page 353
________________ पारिभाविक शब्द कोष .६२९. नवाँ सम नय-वस्तु के एक देश जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं । श्रत ज्ञान के एक अंश को नय कहते हैं। इसके मूल दो भेद हैं, निश्चय नय और व्यवहार नय | निश्चय नय के भी दो भेद है— द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय । प्रमाण - सच्चा ज्ञान, सम्यग्ज्ञान | प्रमाण पाँच हैं- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान और केवल ज्ञान । तर्क -- चिन्ता व्याप्ति का ज्ञान, श्रविनाभाव सम्बन्ध व्याप्ति है । जहाँ जहाँ साधन होना वहाँ वहाँ साध्य का होना और जहाँ जहाँ साध्य न हो वहाँ वहाँ साधन का न होना, इसे अविनाभाव सम्बन्ध कहते हैं । जैसे धूम साधन है अग्नि का, जहाँ जहाँ धूम है वहाँ वहाँ अग्नि श्रवश्य है । जहाँ अग्नि नहीं है वहाँ धूम नहीं हो सकता, ऐसा मन में जो पक्का विचार वह तर्क है । दार्शनिक - दर्शनशास्त्र का जानकार । काव्य - वह रचना जो रसात्मक हो, कविता । चित्र - कागज, कपड़े आदि पर बनी हुई किसी वस्तु को प्रतिमूर्ति ! गणित - संख्या, मात्रा, अवकाश आदि का विचार करने वाला शास्त्र । वाक्य - पदों का वह समूह जिससे वक्ता का अभिप्राय स्पष्टत: समझ में ना जाये । राजनीति-राज्य की रक्षा और शासन को दृढ़ करने का उपाय बताने वाली नीति |

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