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बाईसवाँ सर्ग
फिर कर पचीसवाँ चतुर्मास 'मिथिला' में धर्म प्रचार किया । वर्षा समाप्ति पर 'अङ्गदेश'की ओर पुनीत विहार किया |
फिर 'चम्पा' आये राजवंशको सुख का मार्ग दिखाने को । दुख ग्रस्त राजमाताओं के मन में वैराग्य जगाने को ॥
जग की असारता कह प्रभु ने डाली कुछ ऐसी छाप तभी। सुन जिसे रानियों ने त्यागा पति-सुत-वियोग का ताप सभी ॥
पा बोध राजमाताओं ने सब चिन्ताओं को छोड़ दिया। अपने जीवन की नौका को
संयम के पथ पर मोड़ लिया ।। संयोग सभी हैं वियोगान्त यह पूर्णतया वे जान गयीं। जग की असारता का स्वरूपभी भली भाँति पहिचान गयीं।