Book Title: Param Jyoti Mahavir
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Fulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore

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Page 348
________________ ६०२ छह सौ तेरासी वर्षो तक, यों यहाँ प्रचारित 'अङ्ग' रहे । फिर चालिस वर्षों तक प्रचारके कुछ वैसे ही ढंग रहे || परम ज्योति महावीर फिर 'पुष्पदन्त' श्री' 'भूतबली' ने श्रागम ग्रन्थाकार किया । घट् खण्डागम में गँथ 'वीर'-- की वाणी प्रति उपकार किया || है दिक दिगन्त में परम ज्योति'-- का वह ही धर्म-प्रकाश यहाँ । अतएव अन्त में पुनः उन्हें, कर रहा नमन सोल्लास यहाँ ||

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