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सबने श्रद्धा से प्रेरित हो, निज कर्त्तव्यों का भान किया । सोल्लास नगर की सज्जा में सबने सहयोग प्रदान किया ||
अविलम्ब हुवा गृह द्वारों का बन्दनवारों से अलङ्करण । हर चौराहे पर द्वार बने, बँध गयीं ध्वजायें चित्तहरण ||
कर स्वच्छ सुगन्धित जल द्वारा दी गयी सींच हर राह वहाँ । यों विविध उपायों से नगरी दी गयी सजा सोत्साह वहाँ ||
परम ज्योति महाबीर
श्राभरण वसन
सत्रने पहिने अपने पद के अनुरूप नये । यों सजधज अपनी प्रजा सहित प्रभु-वन्दन को वे भूप गये ||
का दर्शन कर
'सन्मति' जिनेश हर्षित अत्यन्त नरेश हुये । रह शान्त उन्होंने सभी सुने जो वहाँ धर्म-उपदेश हुये ॥