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इसकीसवा सर्ग
इससे "विदेह' की ओर चले, 'त्रिशला' के राजदुलारे वे । धर्मामृत देते हुये सभी - को, 'ब्राह्मण कुण्ड' पधारे वे ॥
सुन समाचार सब जनता में, प्रभु--दर्शन की अभिलाष जगी। अतएव दिव्य ध्वनि सुनने को, वह श्राने द्रुत सोल्लास लगी ।
या दूर न 'क्षत्रिय कुण्ड ग्राम' पहुँचा कट यह वृतान्त वहाँ । पा जिसे वहाँ की जनता भी, श्रा कर बैठी हो शान्त वहाँ ।
शुभ अर्द्धमागधी भाषा में, प्रवचन करने सर्वज्ञ लगे । सुन जिसे अधर्मी, अशनीजन भी होने धर्मज्ञ लगे ।
कुछ ऐसा जादू सा डाला, श्रोताओं पर प्रभु-वाणी ने । जो शान्ति प्राप्ति का सही मार्ग, विधिवत् समझा हर प्राणी ने॥