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यों कर विहार 'भावास्ती' में, पहुँचे वे श्रात्मविहारी थे ।
अविलम्ब यहाँ
भी धर्मश्रवण
हित ये सब नर नारी थे ।
उपदेश यहाँ जो हुवा, उसे
सुन सब जनता का क्षेम हुवा । सम्मिलित संघ में हुये कई, यों जैन धर्म से प्रेम हुवा ||
श्री 'सुमनोभद्र' प्रभृति ने जिनदीक्षा ली उन जग त्राता से । कर्त्तव्य ज्ञान पा लिया शीघ्र, उन तीन लोक के ज्ञाता से ||
परम ज्योति महावीर
'वाणिज्य ' ग्राम में 'महावीर' निज संघ सहित फिर श्राये थे । अपने पन्द्रहवें
'कोसल प्रदेश' से चल 'विदेह' पहुँचे वे केवल ज्ञानी थे I 'श्रानन्द'
शिवानन्दा' दोनों,
बन गये
धर्म-- श्रद्धानी थे
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चतुर्मास,
के दिन भी यहीं बिताये थे ||
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