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परम ज्योति महावीर
हैं धन्य आप, जो इस वय में, निग्रन्थ वेष को धारेंगे । कोमल तन से कर तप कठोर चेतन का रूप निखारेंगे ।
औ' 'कुण्ड ग्राम' के ही न अपितु, त्रिभुवन के नाथ कहायेंगे । केवल न यहाँ के पुरजन ही, शत इन्द्र स्वमाथ नवायेंगे ।।
हम अतः आपका यह दीक्षा-- कल्याण मनाने आये हैं। निज मार्ग प्रदर्शक प्रति श्रद्धासे शीश झुकाने आये हैं ।
जिन-मुनि को मुद्रा धारण कर, होवेंगे श्राप मुनीश प्रभो । कर श्रात्म योग का साधन फिर
हो जायेंगे योगीश प्रभो ।। इस युग का है सौभाग्य महा, जो मिला आपसा नेता है। जिसने सिंहासन त्यागा है, जो सच्चा काम-विजेता है।