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teat सर्ग
हे भव्यो ! जीव-जीवों कासमुदाय जगत कहलाता है । श्र' पुग्दल, धर्म, धर्म, काल, आकाश अजीव
कहाता है ||
श्रतएव उक्त इन छह द्रव्योंसे भिन्न वस्तु है लोक नहीं । इनमें से पुग्दल सिवा किसीको भी सकते अवलोक नहीं ||
कारण कि श्रमूर्तिक होते वे, इसमें है अल्प विवाद नहीं 1 उनमें न रूप, संस्पर्श नहीं, है गन्ध नहीं, है स्वाद नहीं ||
जा सकते,
श्रतएव न देखे वे चर्म चक्षुत्रों के द्वारा ।
पर
विविध प्रमाणों से संभव, पाना उनका परिचय सारा ॥
और सदा,
हर द्रव्य सदा से वह निश्चित रहने वाला है । पर कुछ ने भ्रम से ही अनित्य; इन द्रव्यों को कह डाला है ।।