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आठवाँ सर्ग
"यह पुत्र गर्भ में आते ही, मम कुल में वैभव कोष बढ़ा । धन धान्य स्वर्ण की वृद्धि हुई, औ' गोधन का भी धोष बढ़ा ।।
इससे ही इसको 'वर्धमान' कहना उपयुक्त दिखाता है। कारण, गुण के ही सदृश नाम,
भी रखना मुझको भाता है ॥ यदि मेरा सोचा हुवा नाम, यह श्राप सभी को उचित लगे। सबको ही इसका उच्चारण
करना प्रिय एवं ललित लगे ॥
यौ' अर्थ व्याकरण द्वारा भी यह सबको सार्थक जान पड़े। निर्दोष कहें यदि इसको सब, इस परिषद् के विद्वान् बड़े ॥
तो नामकरण हो इसका यह, जो मैंने अभी सुझाया है । अब सब दें अपनी सम्मति यदि यह नाम सभी को भाया है।"