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समे बस, यही सोच तव सम्मुख मैं, अपनी अभिलाषा रखती हूँ।
औ' श्राज इसी के द्वारा अब, तव जननी-भक्ति परखती हूँ।
तो सुनो ध्यान से, बेटा ! अब, निज मां के मुख्य मनोरथ को। स्वीकार करो तुम 'आदि नाथ'के द्वारा प्रचलित ही पथ को ।
परिणयन 'सुनन्दा' 'सुमंगला'से कर उनसे अनुराग किया । दे दो कन्या सौ पुत्र उन्हें, दोनों का सफल सुहाग किया ।
यों प्रथम बने वे रमा-रमण, तदनन्तर उनने राज्य किया । फिर रमा तथा साभ्राज्य उभय, परित्याग पूर्ण वैराग्य लिया ।
यह मार्ग उन्हीं का अपना अब, तुम सुख दो मेरे प्राणों को । यदि कहो उपस्थित अभी करूँ, मैं ऐसे अन्य प्रमाणों को।