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श्रीवतिय नमः। श्रीशुभचन्द्र भट्टारक विरचित
पाण्डव-पुराण
अथवा जैन महाभारत।
पहला अध्याय ।
श्रीसिद्ध भगवानको प्रणाम है जो सिद्धिके दाता और भण्डार हैं,
"जिनके सभी कार्य सिद्ध हो चुके है तथा जो प्रमाण-नयसे प्रसिद्ध और सर्वज्ञ हैं । वे मेरे लिए सिद्धि प्रदान करें-मुझे सिद्धि दें।।
श्री आदिनाथ प्रभुको नमस्कार है जो धर्मसे सुशोभित और धर्म-तीर्थके चलानेवाले है तथा जो बैलके चिह्नसे युक्त और कर्मभूमिके आरम्भमें सभी व्यवस्था बतानेके कारण आदि ब्रह्मा हैं । वे मेरे इस कार्यकी ठीक व्यवस्था करें।
चन्द्रमाकी कान्तिके समान ही जिनके शरीरकी कान्ति-आभा-है, जो चन्द्रमाके चिह्नसे युक्त और चन्द्र द्वारा पूज्य-स्तुत्य हैं उन सदाचन्द्र चन्द्रमभ भगवानका मैं स्तवन करता हूँ।
शान्ति-स्वरूप और शान्तिके विधाता सोलहवें तीर्थंकर श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्रकी मैं स्तुति करता हूँ। वे स्वयं निष्पाप हैं और भव्य जीवोंके कर्म-शत्रुओंको शान्त करनेवाले हैं तथा जिनके चरण-कमलोंमें हिरणका चिह्न है । वे शान्तिनाथ मस मुझे शान्ति दें।
श्री नेमिनाथ भगवानको मैं स्मरण करता हूँ जो धर्म-रूप रथकी नेमि (धुरा ) है, तीन लोकके स्वामी और कामदेवके मदको चकना-चूर करनेवाले हैं तथा जिनके शासनकी सभी सत्पुरुष प्रशंसा करते हैं-कीर्ति गाते हैं ।