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दूसरा अध्याय। wroom mr.. .. . दूसरा अध्याय।
-orउन परम पवित्र और महावीर वीरप्रभुको नमस्कार है जो सम्पूर्ण वैरियों “पर विजय-लाभ कर संसार-समुद्रको पार कर चुके है।
इसके बाद इसे गद्गद हो महाराजने संसारको आनंद देनेवाली आनंद मेरी वजवाई और दान देकर सभी प्रजाको अमन-चैनमें कर दिया। भेरीके शद्धको सुनते ही अपने अपने मनोरथोंकी सिद्धिकी इच्छासे सब लोग वस्त्र, आभूपण, गहने-गॉठे पहिन कर यात्राके लिए तैयार हुए। सईसोंने हर्पित होकर हलती-चलती हुई सुन्दर किसवारवाले घोडों पर मनोहर पलाण रखे । महावतोने, दंत-प्रहारसे दिग्गजोंको भी डरानेवाले सुन्दर हाथियों पर मनोहर झूलें डाली । सारथी-गण मनोहर पहियोंवाले रथोंमें सुन्दर सुन्दर घोड़ोंको जोत कर उन्हें राज मन्दिरमें ले आये । और पयादे-गण कोई पालकी पर, कोई वैलों पर और कोई ऊँटों पर सवार हो-हो कर सव राजवाड़ेके चौकमें आ उपस्थित हुए | उनके हाथोंमें ढाल, तलवार, माला और शक्ति आदि कई एक हथियार थे । और चाँद जैसे सुन्दर मुंहवाले, ग-युक्त नर्तकी-गण नटोंको साथ लिये हुए नृत्य करनेको तैयार हो-हो कर आये तथा महाराजके आगे नृत्य करने लगे। इस भॉति महाराजको सभी सामग्री सुलभ थी। उनका पराक्रम अद्भुत था और वे लक्ष्मी के स्वामी थे। अतः जान पड़ता था कि वे दूसरे कुवेर ही हैं। कारण कुबेर भी अद्भुत पराक्रमी और लक्ष्मीका पति होता है। इस तरह सज-धज कर तैयार हो वे निर्भय अभयकुमार और पवित्र वारिपेण कुमारको साथ लेकर वीरप्रभुकी वन्दनाको गये। इस समय उनके साथ जिनभक्त चेलिनी भी थीं। जव उद्यान पास आ गया तब वे हाथी परसे उतर पड़े एवं जल्दीसे वीरम के समवसरणमें जा पहुंचे। वहाँ उन्होंने वीरमभुको जी भर देख कर बार बार नमस्कार किया । वाद सबके सब अपने योग्य स्थानमें जा स्थिर-चित्त हो वैठ गये । और सबने ध्यान देकर धर्मका उपदेश सुना।
इसके बाद महाराज खड़े हुए और उन्होंने ज्ञानी गण-नायक गौतम गुरुकी वन्दना कर उनका यो गुण-गान आरम्भ किया। भगवन् ! आप महाभूति है, राजा-महाराजा सभी आपकी पूना-स्तुति करते हैं। आपके ज्ञान-रूप आलोकमें सभी पदार्थ एक साथ झलकते है, दीख पड़ते है । प्रभो आपके लिए कोई भी वस्तु