Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 16
________________ पाण्डव-पुराण । स्वभाववाले कम; तो भी कितने ही सत्पुरुष अब तक मौजूद हैं जो सोनेमेसे मैलको साफ करनेवाली आगकी भॉति कविताके दोषोंको छोड़ कर उसके गुणों पर ही दृष्टि देते है और उसका आदर करते हैं । परन्तु असत्पुरुषोंका स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे सूरजको दोष देनेवाले उल्लू पक्षीकी नॉई दूसरोंकी कृतिको दोष-ही-दोष दिया करते हैं-उन्हें गुण तो सूझते ही नहीं; क्योंकि उनका स्वभाव ही उस आगकी तरह है जो जला कर दाह पैदा करती है। और सत्पुरुषोंका स्वभाव उन मेघोंके समान होता है जो निरपेक्ष भावसे लोगोंको ठंडा और मीठा जल पिला कर उनकी प्यासको वुझा देते हैं । दुष्ट पुरुष मतवाले पुरुषके समान होते है । वे कभी हेय-उपादेय और हित-अहितका विचार ही नहीं करते; किन्तु अपने दुष्ट स्वभावसे सारे संसारको दुष्ट बना डालनेकी चेष्टामें लगे रहते हैं। सजन पुरुष समय पर बरसनेवाले मेघोंके समान होते हैं। वे अपने अमूल्य और उदार उपदेशोंके द्वारा लोगोंको हितकी और झुकानेकी चेष्टा कर उन्हें सुखी बनानेमें लगे रहते है । तथा जिस तरह सॉप विष और चन्द्रमा अमृत देता है उसी तरह दुष्ट लोग संसारको दुःख और सज्जन लोग सुख देते हैं। इस प्रकार सुजन और दुर्जनके स्वभावका जो यह विचार किया गया है इस पर पाठक ध्यान देंगे और इससे वे बहुत लाभ उठावेंगे। __आचार्योंका मत है कि हर एक कथामें नीचे लिखी छह बातें अवश्य ही होनी चाहिए, क्योंकि इनके बिना कथाकी कुछ भी कीमत नहीं। १ मंगल-जिनेन्द्रदेवके गुण-गानको मंगल कहते है, कारण मंगलका जो मळ-गालन-पाप-विनाशन-रूप-अर्थ है वह उसमें मौजूद है। क्योंकि इस मंगलसे भव्य जीवोंका कर्म-मल धुल जाता है । यह मंगल इस इतिहास-समुद्रकी आदिमें किया जा चुका है। __ २ निमित्त-ग्रन्थके रचे जानेका निमित्त पापका विनाश माना गया है और वह इस इतिहासमें मौजूद है क्योंकि इसको बनानेसे मेरे और सुननेसे श्रोताओं के पाप-कर्म हलके होंगे। ३ कारण-ग्रन्थ-रचनाका कारण भव्य जीवोंके चित्तका समाधान हो जाना माना गया है। वह भी इस ग्रन्थमें विद्यमान है। क्योंकि यह कथा प्रसिद्ध श्रोता श्रेणिक राजाके प्रश्न करने पर उनके चित्तके समाधान करनेको श्रीमहावीर प्रभुने कही थी।

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