Book Title: Panchshati Author(s): Vidyasagar, Pannalal Sahityacharya Publisher: Gyanganga View full book textPage 9
________________ गृहीतसंयम के मार्ग से च्युत न होने तथा निर्जरा के लिये क्षुधादि 22 परिषहों पर विजय प्राप्त करने का आदेश दिया है। परिषहों पर विजय प्राप्त किये बिना मुनि पद का निर्बाध निर्वाह नहीं होता, अतः इन्हीं पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा लेखक ने दी है। शतक में द्रुतविलम्बित छन्द का और पद्यानुवाद में मुक्तक छन्द का प्रयोग किया है। इसमें आचार्यश्री ने मूल श्लोक के साथ अन्वय नहीं दिया है। सभी श्लोकों में अन्त्यानुप्रास रखा गया है। शीतपरिषहजय का एक पद्य देखिये -- चलतु शीततमोऽपि सदागति - रमृतभावमुपैतु सदागतिः । जगति कम्पवती रसदा गतिः स्खलति नो वृषतोऽपि सदागतिः ।। अर्थात् भले ही अत्यन्त, शीतल सदागति - वायु चल रही हो, भले ही सदागति अग्नि अमृत जैसी प्रियता को प्राप्त हो, भले ही संसारी लोगों की गति कम्पन से सहित हो परन्तु सदागति - साधु धर्म से स्खलित नहीं होता । इसी का पद्यानुवाद देखिये- शीत शील का अविरल अविकल बहता जब है अनिल महा , ऐसा अनुभव जन जन करते अमृत तुल्य का अनल रहा । पग से शिर तक कपड़ा पहिना कप कप करता जगत रहा, किन्तु दिगम्बर मुनि पद से नहि विचलित हो मुनि जगत रहा ।। सुनीतिशतक आचार्य महाराज की यह प्रासाद गुण युक्त सुबोध रचना है। इसकी रचना उपजाति छन्द में हुई है तथा पद्यानुवाद में मुक्तक छन्द का प्रयोग किया है। सम्पूर्ण शतक हितावह नीतियों से परिपूर्ण है। नमूना के लिए एक श्लोक देखिये - भोगानुवृत्तिर्विधिबन्धहेतु-र्योगानुवृत्तिर्भवसिन्धुहेतुः । बीजानुसारं फलितं फलं तत् किं निम्बवृक्षे फलितं रसालम् ।। 35।। भोगों का अनुसरण कर्मबन्ध का कारण है और योगों का अनुसरण संसार सागर से पार होने के लिए सेतु के समान है। बीज के अनुसार ही फल लगता है। क्या नीम के वृक्ष में कभी आम लगा है ? पद्यानुवाद देखिये - भोगी बनकर भोग भोगना भव बन्धन का हेतु रहा, योगी बन कर योग साधना भव सागर का सेतु रहा । जैसा तुम बोओगे वैसा बीज फलेगा अहो सखे, निम्ब वृक्ष पर सरस आम्र फल कभी लगे क्या कहो सखे ! ।। आचार्य विद्यासागर जी का जीवनवृत्त मैं "कुन्दकुन्द का कुन्दन" और "जैन गीता" में दे चुका हूँ अतः यहाँ उसे पुनरुक्त नहीं कर रहा हूँ । आपके द्वारा लिखित और प्रकाशित साहित्य की सूची परिशिष्ट में दी गई है। यहाँ तो मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज पुण्यशाली परमतपस्वी साधु हैं, जिस क्षेत्र पर आपका चातुर्मास होता है वहाँ भारत के कोने कोने से श्रद्धालु लोग सपरिवार पहुँचते हैं तथा क्षेत्रों पर आवास की न्यूनता अनुभव में आने लगती है। आपके नाम पर पिसनहारी की मढिया, जबलपुर में आचार्य विद्यासागर शोध संस्थान संचालित हैं। इसी तरह श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल आपके निर्देशनPage Navigation
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