Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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________________ [ 266] पञ्चकल्प-भाष्ये णासेइ अगीयत्थो चतुरंगं सन्धलोगसारंग। णटुंमि उ चतुरंगेण हु सुलभं होति चतुरंग // 2389 // थिरपरिवाडीहिं बहुस्सुएहिं संविग्गणिस्सिय करहिं। कमि भासियध्वं अणुओगे गंधहत्धीहि // 2390 // मादी य मुसाबादी बिलियं तांतेयं वयं च लोवेति / भाषी च पावजीधी असुतीलित्ते कणगदंडे // 2391 // आभवते पच्छित्ते ववहारो समासतो भवे दुविहो। दोसु य पणगं पणगं आभव्यते अहीकारो // 2392 / / चितो अचित्तोय मीसओ खेत्तकालाणफण्णो / संचविही बवहारो आभव्यतो तु णायव्यो / 2393 // सहषि तु सचित्तो अच्चित्तो हवति वत्थमादी उ। मीसो समंडगाणं खेतमि तु गाममादीहिं / / 2394 // गरादि दलाखत्ते पुण वसहीए तत्थ भग्गणा होति / काल उदुवासाहु य आनणा होति णायथ्या 2395 अहवाऽऽतषण उपसंपयवेत्तकालपञ्चजा। णाऊण संघप्रज्झे ववहरिभवं आणस्साणं / / 2396 // सुत सुह दुक्खे खेत्ते मग्गे विणए य पंचहा होति / सव्वावि य एषाओ सुयणाणमणुप्पवत्तीओ 2397
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