Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 292
________________ कालकल्पः [203 एवं खेत्तओ एसो कालओ उडुबद्धि होति मासो तु। वासासु चउम्मासो एवति कालो विदिण्णो तु 2452 एवति कालविदिण्णं पुण्णे णिकारणंमि तेण परं / ण तु उग्गहो विदिण्णो मोत्तूणं कारणमिमेहिं 2453 असिवादिकारणहिं दुविहऽतिरेगे वि उग्गही होति / जा कारणं तु छिण्णं तेण परं उग्गहो ण भवे 2454 जदि होति खेत्तकप्पो असती खेत्ताण होज्ज बहुगावि। खेत्तेण य कालेण य सव्वस्स वि उग्गहोणगरे 2455 सति लंभे खेत्ताणं जोग्गाणं जो तु जत्थ संथरति / सो तहितं संचिक्खे खेत्ताण असती पुण बहूंवि 56 एगत्थ उ गामादिसु जहियं तू संथरंति तहिं अच्छे / सव्वेसिं तहिं उग्गहो साहारण होति जह णगरे // एसा खेत्तुवसंपद पुरपच्छासंथुए लभति एत्थ / मह मित्तवयंसा या जं च लभे सुत्तोवसंपन्नो 2458 मग्गोवसंपदाए मग्गं देसेति जाव सो तस्स / लभती दिट्टाभट्ठादि जोय लाभो पुरिल्लाणं // 2459 // विणओवसंपदा पुण कुव्वति विणयं तु जो तुरायणिए सव्वं तस्साभवती जो उ उवट्ठायती तस्स // 2460 //

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