Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 302
________________ अणुवासनाकल्प [ 283] वाघाते सेवंतो अकिचमेयं तु चिंतए साहू। होति तहा णिजरओ जो पुण इणमो समायरति // पूजारसपडिबद्धो ओसण्णाणं च आणुयत्तीय / चरणकरणं णिगूहति तं जाणऽणुयत्तियं समणं 42 // पूजारसहेङ वा बेती जह किच्चमेव एयं तु / मा मे ण देहिति पुणो जह एसोऽकिच्चकारीत्ति 43 अहवा ओसण्णाणं तु अणुयत्तीय बेति को दोसो। आहाकम्मादीसुं णवरं मा कीरउ सयं तु // 2544 // सो गूहति चरणादी एवं तुच्छं खु तस्स सामण्णं / तम्हा तु परवेजा सुद्धं मग्गं तु किं चऽणं 2545 णिस्साणपदं पीहति अणिस्स विहरंतयं ण रोएति / तं जाण मंदधम्म इहलोगगवंसगं समणं // 2546 // अहवा उम्मग्गो खलु णिस्साणं तं तु पीहए जो तु। तस्स तु छेदसुतत्थं ण कहे दोसा इमे तहियं 47 // पंचमहव्वतभेदो छक्कायवहो / तेणऽणुण्णाओ। सुहसीलऽवियत्ताणं कहेइ जो पवयणरहस्सं 2548 // पडिसेवकम्प एसो अहुणा वोच्छं अणुवासणाकप्पं / अणुवास मासकप्पो वासावासो इमेसिं तु // 2549 / /

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