Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 306
________________ अणुवासनाकल्प: [287 संकमणण्णमण्णस्स सकासे जदि तु ते अहीयंते। सुत्तत्थतदुभयाइं संधे अहवावि पडिपुच्छे / / 2577 // ते पुण मंडलियाए आवलियाए व तं तु गेण्हेजा। मंडलियमहिजंते सचित्तादी तु जो लाभो 12578 // सो तु परंपरएणं संकामति ताव जाव सट्ठाणं / जहियं पुण आवलिया तहियं पुण अंतरे ठाति 2579 ते पुण ठित एकाए वसहीए अहव पुप्फकिण्णा तु / अहवा वि तु संकमणे दव्वस्सिणमो विही अण्णो / / . सुत्तत्थतदुभयविसारयाण थोव अ संततीभेदे / संकमणदव्वमंडलि आवलियाकप्पअणुवासा 2581 पुव्वतिाण खेत्ते जदि आगच्छेज अण्ण आयरिओ। बहुसुय बहुआगमिओ तस्स सगासंमि जति खेत्ती॥ किंचि अहिजेजा ही थोवं खेत्तं च तं जदि हवेजा। ताहे असंथरंता दोणि वि साहू विसजेति // 2583 / / अण्णोण्णस्स सगासे तेसिं पिय तत्थ विज्जमाणाणं। आभवणा तह चेव य जह भाणयमणंतरे सुत्ते 84 एवं.णिव्वाघाते मास चतुम्मासितो उ थेराण / कप्पो कारणतो पुण अणुवासो कारणं जाव 2585

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