Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 308
________________ अणुपालमाकल्प [ 289] पुवुद्दिढगस्स उ।। पच्छुट्टि पवाययंतस्स / 2 / संवच्छरंमि पढ मे पडिच्छए जं तु सचित्तं // 2595 / / पुव्वं पच्छुद्दिष्टे पांडच्छए जं तु होति सञ्चित्तं / संवच्छरंषि बितिए तं सव्व पवाययंतस्स / / 2596 / / पुत्वं ५च्छुद्दिष्टे सीसंमि तु जं तु होति सचितं / संवच्छरंमि पढमे तं सव्व गणस्स आभवति / 4 / / पुवुद्दिवगणस्सा / / पच्छुद्दिढ पवाययंतस्स / 6 / संवच्छमि बितिए सीसंमि तु जं तु सचित्तं 2598 पुव्वं पच्छुद्दिट्टे सीमंमि तुजं तु होति सचित्तं 7 / संवच्छमि तनिए तं सव पवाययंतस्स // 2599 // पुवुद्दिठे गच्छे ।८पच्छुद्दिट्टे पवाययंतस्स / / संवच्छगम पढमे सिस्सिणिए जंतु सचितं // 2600 // पुत्वं पच्छुद्दिठे सिस्सिणिए जंतु होति सचित्तं / संवच्छरमि बितिए तं सव्व पवाययंतस्स / 10 / 1 // पुत्वं पच्छुद्दिठे पडिच्छियाए उ जंतु सचित्तं / संवच्छरम पढमे तं सव्व पवाययंतस्स / 11 // 2602 खेत्तुवसंपायरिओ सुहदुक्खी चेव जति तु संठविओ। कुलगणसांघच्चो वा तस्स इमो होंति उ विवेगो 2603

Loading...

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332