Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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________________ [296] उपसंहारः घसणं वाजीमादी सूलजरादी तु होइ आतंको। धितिसारीरबलेणं हीणो असहू मुणेयव्वो // 2659 // एतेहिं कारणेहिं अकप्पपडिसेवणं करंतो वि। सुद्धं मग्ग परूवे अप्पाण हिया अतो एत्तो // 2660 // कप्पपणयस्स भेदा सोचा णच्चा तहेव घेत्तुणं / चरणकरणे विसुद्धे आयरणपख्वणं कुणह // 2661 // आयरियसगासातो सोचा णचा य घेत्तुमत्थेणं / हितते ववत्थवेतुं आयरणपरूवणा कुजा / 2662 // कप्पपणगस्स भेदो परूविओ मोक्खसाहणट्टाए। जं चरिऊण सुचिहिता करेंति दुक्खक्खयं धीरा 2663 पंचविह सुत्तकप्पाण विभासा वित्थरं पमोत्तूणं गहिता सीसहियहा अव्वोच्छित्तट्टया चेव // 2664 // [गाहग्गेण पंचवीससयाई चउहत्तराई 2574 सिलोयग्गेणं बत्तीस सयाणि दसअट्ठसहियाई ] सव्वसुयसमूहमयी वामकरग्गहियपोत्थया देवी। जखकुहंडीसहिया दंतु अविग्धं भणंताणं // महत्पञ्चकल्पभाष्यं / संघदासक्षमाश्रमणविरचितं समाप्तम् /
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