Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 300
________________ लिङ्गकल्पः [ 281] केरिसएणं तु समं संभोगो तेसि होति कायव्वो। अहवा विण कायव्वो भण्णति इणमो णिसामहि // ण वि एस मंदधम्मे ण गिहत्थेसुं ण चेव अन्जासु / बावत्तरी विभत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे // 2524 // दिज्जति घेप्पति य तहा केसिंची दिज्जए ण घेप्पति तु णवि दिजति घेप्पति तू णवि दिजति णवि य घेप्पति तू // 2425 // संविग्गसंजयाणं दिज्जति घेप्पह य पढमभंगो तु / संजतिवग्गे दिजति णवि घेप्पति कारणे बितिओ। गिहिअण्णनित्थियाणं णवि दिज्जति घेप्पती उणवरं चणवि दिज्जतिणविघेप्पति पासत्थादीण सव्वेसिं॥ बावत्तरी विभत्त त्ति एस बारसविही तु संभोगी। छहिं गुणितो बांवत्तरि संभोगाणं मुणेयव्वा 2528 बावत्तरी तु एसा दुगतिगचउपंचछक्कसंगुणिता। जावइय होति भेदा तेसु विसुद्धेसु संभोगो // 2529 // पडिसहो असुद्धंसुं कप्पो संभोग एस वक्खाओ। अहुणा तुलिंगकप्पं वोच्छामि अहाणुपुठवीए 2530 जो पुट्विं वक्खाओ जिणथेराणं तु दोण्ह ची कप्पो / रूढ णहकक्खमादी सो चेव इहं पि णायव्वो 9531

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