Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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________________ [280 / पञ्चकल्प-भाष्ये रागद्दोसाणुगतो जो संभोगं तु पालए पत्तं / .. सो दुट्ठो णायव्वो तस्सुक्खवो विसंभोगी :2514 // अहवा वि इमेहिं तू कारणेहिं णियमा भवे विसंभोगी। संभोगविहिं जा तू विवरीयं आयरेजाहि // 2515 // उवरिममज्झिमहेट्टिम संभोगाणगं तिहाविभए। पडिसेहे पडिसेहो समणुण्णे होति समणुण्णो 2516 उवरिमए त्ति अहागड मज्झिमगाहोंति अप्पपरिकम्मा। सपरिकम्मा हेहिम संभोगविही लिहा एसो।। अहाकडा मिलति अहाकडेसुं भत्तं च पाणं तह धोवणं वा / अहाकडा गच्छति हेहिमेसु ण हेटिमा छुन्भ अहाकडेसु // 2518 // मज्झिमिता हेट्टिमते छुन्मांत ण तु हेट्टिमा उपरिमेसुं। एसो तिविहो तु भवे संभोगविही समासणं 2519 पडिसेहे पडिलेहो सपरिकम्मं तु होति पडिबद्धं / तस्स पुणो पडिसेहो उवरिल्ले मेलणा जाउ 2520 // पडिसेहो हेढुवरि उवरिल्लो हेट्टिमे अणुण्णाता। अह पडिसेहि अणुण्णा होति इमा तू मुणेयव्वा 2521 जो पडिसिद्ध एयं आयरती तस्स होति पडिसेहो / पडिसेहो विवेगोत्ती अवितहकरणे अणुण्णा उ 2522
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