Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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________________ उपधिकल्प: [ 277] संथरमाणो गेण्हति अतिरित्तं उवहि जो भवे समणो। वण्णादिजुते मुच्छति इट्टाहारे धुवस्सेवं // 2487 // एतेसु अणिटेसु य जो दुस्सति से करेति उवघातं। णाणादीणं तिण्हं तम्हा ते वज्जिए हेतू // 2488 // जो जत्थ जदा जहियं उवही परिभोगओ अणुण्णाओ सो तत्थ अणतिचारो अणणुण्णाए चरणभेदो 2489 जह सिंधूओ कप्पो ओराला उण्णिया अणुण्णाया। पिसियादीण य गहणं खीरादीणं चऽणुण्णातं / / अतिहिमदेसे य तहा कारणियगयाण सिसिरकालंमि। परि ताण य को विवाद चरणे अणुवघातो 2491 लाडविसयादिएK एतेसिं चेव भोत्तु पडिसेहो / पडिमिद्धे परिभोग कुणमाणो भंजती चरणं // 2492 // णाणंपि तु सो भिंदइ उवदेसं जेण ण कुणती तस्स / जं णाण पुव्वदंसण दंसणभेदो वि तो तेणं // 2493 // णिवदिक्खितमतरतादिएमु कजेसु होति परिभोगो। समणुण्णाओ कसिणादियाण इहरा अणुव भोगो॥ एसो उ उवहिकप्पो अहुणा संभोगकप्प वोच्छामि / तस्स पसाहणहेडं गाहामुत्तं इमं आह // 2495 //
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