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भी बहुत आख्यान मंजरी है । विमल मुनि के इन छह आख्यान काव्य पढने से मालूम होता है कि यही धारा प्राचीन काल से अभी तक चल रही है। इसलिए संक्षेप में इसका परिचय देना प्रासंगिक मालूम होता है।
___ संस्कृत साहित्य तथा प्राचीन भारतीय साहित्य कथानक मंजरी से समृद्ध है। यथा-पुरूरवा-उर्वर्शी,यमयमी,विश्वमित्र सतद्रु-विपाशा आदि बहुत कहानियों से हम परिचित हैं । विविध कथा प्रसंगों में वैदिक ब्राह्मण साहित्य में भी बहुत कहानियां हैं । किंपुरूष,वित्रासुर, शुनः शेफ इत्यादि आख्यायिकाओं से हम लोग सुपरिचित हैं । शतपथ ब्राह्मण की मनुमत्स्य कथा विश्वप्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त रामायण, महाभारत, पुराण आदि ग्रन्थों में भी छोटी-छोटी कहानियां हैं जो आज भी बहुत उपादेय हैं। मंधाता,यमाती,धुन्धुमार,नल,नहुष आदि कहानियां भारतीय साहित्य में अमर हैं । केवल संस्कृत साहित्य ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन साहित्य में भी कथानक मंजरी सुप्रसिद्ध है । पाली भाषा में जातक अथवा जातकट्ठ कहा और बुद्ध संस्कृत में महावस्तु, ललितविस्तर, जातकमाला, दिव्यावदान आदि ग्रन्थ आख्यान मंजरी से समृद्ध है।
__ जैनियों में भी आख्यान मंजरी बहुत ही उपलब्ध है । जैन आगम ग्रन्थ में उनकी जो टीका है उसमें जैन धर्म को विशद करने के लिए बहुत कहानियों की अवतारणा की गई है। हर्मन याकोबी ने उत्तराध्ययन की टीकाओं में जो आख्यायिका है उसका संकलन करके प्रकाशित किया है । (Selected Narratives in Maharastra, Lipzig १८८६)
ऊपर लिखित आख्यायिका केवल प्रासंगिक है अर्थात् धार्मिक विषय को स्पष्टीकरणार्थ आख्यायिका की अवतारणा की गई है। इसी प्रसंग में ये सब कहानियां रचित हुई हैं। किन्तु बाद में संस्कृत,प्राकृत और पाली भाषा में हिन्दु,जैन और बौद्धों ने बहुत ही कहानियों की रचना की है । पंचतंत्र अथवा हितोपदेश बहुत ही प्रसिद्ध है । ये दोनों तो विदेशी भाषाओं में अनुवादित भी हुए हैं । इसके अलावा शुकसप्तति,वेतालपंचविंशति,विक्रमचरित्र, चतुरवगचिंतामणि, पुष्पपरीक्षा, भोजप्रबन्ध, उत्तमकुमारचरित्रकथा, चंपक श्रेष्ठीकथा, पालगोपालकथा, सम्यकत्व कौमुदी इत्यादि आख्यान ग्रंथ संस्कृत तथा विश्वसाहित्य में सुप्रसिद्ध हैं। पैशाची भाषा में लिखित अधुनालुप्त गुणाढ्य की वृहत्कथा ग्रन्थ का सार अवलम्बन करके बुद्धस्वामी ने वृहत्कथाश्लोक संग्रह की रचना की है । इसके बाद क्षेमेन्द्र वृहद् कथा मंजरी एवं सोमदेव का कथासरित्सागर रचित हुआ था। कथा संग्रह साहित्य में मेरुतुंग का प्रबंधचिंतामणि (१३०६ A.D), राजरामेश्वरसूरि का प्रबन्ध कोष (१३४० A.D) उल्लेख योग्य है । इसके अलावा जैनियों ने कथानक साहित्य का सृजन किया है । इस तरह साहित्य का मूल उद्योक्ता जैन सम्प्रदाय है।