Book Title: Om Namo Siddham
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 11
________________ मंत्र सार * राख से बर्तन शुद्ध होता है, खटाई से तांबे का बर्तन और धारा के बेग से नदियाँ शुद्ध होती हैं इसी प्रकार मंत्र जप से मन शुद्ध होता है। * हाथी केवल अंकुश से, घोड़ा हाथ (चाबुक) से, सींग वाला जानवर लाठी से। और दुष्ट मनुष्य को तलवार से वश में किया जाता है, इसी प्रकार चंचल मन को वैराग्य और मंत्र जप आदि के अभ्यास से वश में किया जाता है। * अपनी स्त्री, भोजन और धन इन तीनों में संतोष करना चाहिये; किंतु विद्या पढ़ना,जप करना-कराना और दान देना इन तीनों में संतोष नहीं करना चाहिये। * मंत्र जप स्मरण तत्त्व चर्चा करने से ज्ञान ध्यान की सिद्धि होती है और उनसे उत्तम आचरण स्वत: होने लगता है। * मंत्र जप के सतत् अभ्यास से जीवन मधुरता से भर जाता है, सुखमय बन जाता है, आत्म शांति का अनुभव होता है और अनेक विशेषतायें प्रगट होती * समय, समझ, साम्रगी, और सामर्थ्य इन चारों को अपने में लगाना सदपयोग है और पर में लगाना दुरुपयोग है। * मंत्र जप और ध्यान आत्म साक्षात्कार करने के उपाय हैं, इससे आत्म ज्योति का दर्शन होता है और आत्म तत्त्व परमात्म स्वरूप में लय होता है। * मौन के समय यथासंभव शांतचित्त होकर ध्यान और मंत्र जप ही करना चाहिए। * ध्यान की चरम अवस्था में साधक आनंद महोदधि में निमग्न हो जाता है। * अस्त-व्यस्त ध्वस्त एवं भग्न मन को शांत सखी और स्वस्थ करने के लिए मंत्र जप और ध्यान सर्वश्रेष्ठ औषधि है। * मनुष्य जन्म सब जन्मों का अंतिम जन्म है, इस जन्म में संसार से सदा के लिए मुक्त होने का मौका मिला है, इस मौके को हाथ से नहीं गंवाना चाहिए। * मन अत्यंत चंचल है और प्रति समय संसार के सब्जबाग दिखाता रहता है, इसको वश में करने का और आत्म शुद्धि का सबसे उत्तम साधन मंत्र जप मंत्र का स्वरूप अक्षर अथवा अक्षरों के समूह को मंत्र कहते हैं। "निर्बीजमक्षरं नास्ति' अर्थात् ऐसा कोई अक्षर नहीं है जिसमें शक्ति न हो। शब्द की शक्ति अपरिमित है और उसका अनुभव हमें अपने जीवन में होता रहता है। शब्दों का मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जैसे-कोई व्यक्ति हमसे कुछ भला-बुरा कह दे तो मन में उसी बात को लेकर अनेक प्रकार की तरंगें उठती हैं, इसी प्रकार मंत्र रूप शब्दों के द्वारा अंतर में शुभता का जागरण, एकाग्रता, समता का अनुभव होता है। इसीलिए कहा भी है - शब्द संभारै बोलिये,शब्द के हाथ न पांव। एक शब्द से औषधि, एक शब्द से घाव ॥ अक्षर और शब्दों से मिलकर ही मंत्र बनते हैं। कभी-कभी संत सद्गुरु सांकेतिक रूप में कुछ युक्तियां बता देते हैं। जिज्ञासु के लिए वह युक्तियां मंत्र की तरह कार्य करती हैं। बुजुर्गों के अनुभव भी सावधान पुरुष के लिए मंत्र की तरह उपयोग में आते हैं। ___महाभारत के युद्ध की घटना है कि जब कर्ण और अर्जुन का युद्ध हुआ तो कर्ण के सारथी शकुनि ने कुंती को दिए गए अपने वचन के अनुसार कर्ण को हराने का एक सरल मार्ग अपनाया। जब अर्जुन बाण छोड़ता था तो वह चिल्लाता था "वाह अर्जुन" और जब कर्ण बाण छोड़ता था तब वह उसे झिड़कते हुए कहता था- "छि:"। इस उत्साह और अनुत्साहकारक वाक्यों ने एक को जिता दिया और दूसरे को हरा दिया, अत: शब्द की शक्ति अपरिमित है। अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्। अयोग्य: पुरुषो नास्ति,योजकस्तत्र दुर्लभः ॥ अर्थ-कोई अक्षर ऐसा नहीं जो मंत्र न हो, कोई पेड़ की जड़ ऐसी नहीं जो औषधि न हो और कोई पुरुष ऐसा नहीं जो योग्य न हो, किंतु "योजकस्तत्र दुर्लभः" योजक तो दुर्लभ ही होता है। किन शब्दों के मिलाने से किस प्रकार की शक्ति पैदा होती है, इसको जानकर उन शब्दों की योजना करना ही दुर्लभ कार्य है, किंतु ज्ञानी योगी साधकों के जीवन में यह सुलभ होता है। जो मंत्र दृष्टा या उसके आविष्कर्ता होते हैं वे इस प्रकार की समायोजना करके अक्षरों का मेल मिलाकर अक्षरों को मंत्र का रूप देते हैं और अपनी अंतर्भावना को उस साधन से सिद्धि तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उन अक्षरों के मेल से उस प्रकार की कार्य साधक शक्ति प्रगट होती है, किंतु मंत्र में केवल अकेले ही शब्द शक्ति कार्य नहीं करती बल्कि अन्य शक्तियां भी कार्य करती हैं। वे अन्य शक्तियां हैं- मंत्र का

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