Book Title: Om Namo Siddham
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 44
________________ है उसका अर्थ नमस्कार करना होता है। नम: के योग में चतर्थी विभक्ति हो जाती | संस्कृत द्वितीया का बहुवचन | षष्ठी का बहुवचन | प्राकृत भाषा का पाठ । है। व्याकरण के नियमानुसार नमोर्हते,नमो अरहते वा नमो अरिहते बनता है। नमो अरिहंतान् नमो अरिहंतानां णमो अरिहंताणं अथवा प्राकृत भाषा में नकार नहीं होता इसलिए णमो ही रहता है। इस प्रकार णमो णमो अरहंताणं अरिहंताणं या णमो अरहंताणं बनता है। इसमें द्वितीया और चतुर्थी दोनों के रूप नमो सिद्धान् समाहित हैं। ५५ नमो सिद्धानां णमो सिद्धाणं अब आगे णमो सिद्धाणं पद को सिद्ध करते हैं। इसका पहला अक्षर सि है, नमो आचार्यान् नमो आचार्याणाम् | णमो आइरियाणं उसका अर्थ सिद्ध है। वही एकाक्षरी वर्ण मात्रा कोश में लिखा है "सि सिद्धौ च" नमो उपाध्यायान् नमो उपाध्यायानाम् | णमो उवज्झायाणं सिद्ध परमात्मा निष्ठितार्थ हैं, उनके सभी कार्य सिद्ध हो गए हैं, इसलिए उन्हें सिद्ध | नमो लोके सर्व साधून नमो लोके सर्व णमो लोए सव्व साहूणं कहते हैं। यहां पर भी विभक्ति आदि पहले के समान समझना चाहिए, इस प्रकार साधूनाम् व्याकरण के अनुसार- 'नमो सिद्धान्' अथवा 'नम: सिद्धेभ्य:' बनता है। प्राकृत में णमो सिद्धाणं' ऐसा सिद्ध होता है। इसी प्रकार आचार्य पद सिद्ध होता है, प्रश्न-इस णमोकार मंत्र में नमः शब्द है. इसके योग में चतुर्थी इसमें भी विभक्ति आदि पूर्वोक्त अनुसार समझना तथा शस् विभक्ति लाकर द्वितीया विभक्ति होती है, सो तुमने द्वितीया और षष्ठी रूप क्यों लिखा है, चतुर्थी का बहुवचन 'आचार्यान्' सिद्ध कर लेना चाहिए, अथवा नमः शब्द के योग से विभक्ति का ही रूप लिखना चाहिए? चतुर्थी विभक्ति लगाकर 'नम: आचार्येभ्य:' बना लेना चाहिए। समाधान- नमः शब्द के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है परंत द्वितीया इन दोनों का प्राकृत भाषा में णमो आइरियाणं' बन जाता है इसी प्रकार और षष्ठी का निषेध नहीं है। आगे प्रश्न के अनुसार चतुर्थी विभक्ति का भी रूप उपाध्याय परमेष्ठी के लिए शस् विभक्ति पूर्वक द्वितीया का बहुवचन 'नमो । दिखलाते हैं- 'णमो अरहंताणं-नमोऽर्हदभ्यः-अरहतों के लिए नमस्कार हो। उपाध्यायान् अथवा चतुर्थी का नम: उपाध्यायेभ्यः' पद सिद्ध होता है, इसी को णमो सिद्धाणं-नम: सिद्धेभ्य:-सिद्धों के लिए नमस्कार हो । णमो आइरियाणं प्राकृत में णमो उवज्झायाणं' कहते हैं। पांचवें पद के रूप द्वितीया बहुवचन में। नमः आचार्येभ्य:-आचार्यों के लिए नमस्कार हो । णमो उवज्झायाणं-नमः 'नमो लोके सर्वसाधून' और चतुर्थी में 'नम: लोके सर्व साधुभ्यः' बनता है तथा उपाध्यायेभ्यः-उपाध्यायों के लिए नमस्कार हो । णमो लोए सव्व साहूणं-नम: प्राकृत भाषा में 'णमो लोए सव्वसाहूणं' सिद्ध होता है। ५६ लोके सर्व साधुभ्य:-लोक में समस्त साधुओं के लिए नमस्कार हो । इस प्रकार इस प्रकार पंच णमोकार के पांचों पद सिद्ध हुए। यदि इन्हीं शब्दों का षष्ठी द्वितीया चतुर्थी और षष्ठी तीनों के रूप सिद्ध होते हैं। ५८ का बहुवचन बनाया जाए तो इन शब्दों से आम विभक्ति लगाकर नु का आगम इससे सिद्ध होता है कि नम: शब्द के योग में चतुर्थी के अलावा द्वितीया करते हैं,न आम् नाम् हो जाता है। नाम् परे हो तो अकार को दीर्घ हो जाता है, और षष्ठी के रूप भी संभव हैं जैसा चर्चा सागर से स्पष्ट है। "व्याकरणाचार्य श्री इन सब क्रियाओं को कर लेने पर अरिहंतानां, सिद्धानां, आचार्याणाम, जानकी प्रसाद जी शास्त्री बीना के अनुसार'ॐ नम: सिद्धम्' मंत्र में जो द्वितीयांत उपाध्यायानां तथा भानु शब्द के समान सर्व साधूनां सिद्ध होते हैं। नम: शब्द के सिद्धम् पद है इसका खुलासा तो पूर्व में हो ही गया है। इसमें उपपद विभक्ति, लगाने से सबको नमस्कार हो ऐसा अर्थ होता है। कारक विभक्ति, जहत् स्वार्थ वृत्ति: और अजहत्स्वार्थ वृत्ति: आदि के अनुसार प्राकृत भाषा के अनुसार इन सब विभक्ति सहित शब्दों की यंत्र रचना इस द्वितीया और चतुर्थी का योग बनता है। ५९ प्रकार है- ५७ इसी संदर्भ में अध्यात्मयोगी श्री मनोहर जी वर्णी सहजानंद महाराज का कथन महत्वपूर्ण है- "सिद्ध भगवान को नमस्कार करने के संबंध में दो मंत्र आते ५५. वही, पृष्ठ३५८ ५८. वही, पृष्ठ ३७१ ५६. वही, पृष्ठ-३६०,३६८ ५९. ॐ नम: सिद्धं की प्रामाणिकता: व्याकरणाचार्य श्री जानकी प्रसाद जी शास्त्री ५७. वही, पृष्ठ ३७१ बीना, १० जून १९९६

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