Book Title: Om Namo Siddham
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Bramhanand Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ अर्थ- अपने अक्षय पद में रमण कर अक्षर (अविनाशी) स्वरूप को प्राप्त करो। स्वर अर्थात् सूर्य समान स्वभाव में रमण करना ही सिद्धि से संयुक्त होना है। विज्ञान स्वरूप में रमण करना ही ममल पद है। व्यंजन अर्थात् अपने प्रगट स्वरूप सहित रहो यही अक्षर, स्वर, व्यंजन जिन वचनों की सच्ची विनय कही गई है। जैसे अक्षरों से मिलकर पद बनता है उसी तरह जिन वचनों से संयुक्त होने पर ही शुद्ध सिद्ध पद उत्पन्न होगा। इन शब्दों के सहारे अपने ममल पद निज स्वभाव में लीन रहो। १२२ अक्षर, स्वर, व्यंजन, पद यह सब शब्द कोष के अनुसार ज्ञान के वाचक हैं। शब्द तो पुद्गल हैं, वे पुरुष के निमित्त से वर्ण, पद,वाक्य रूप से परिणमित होते हैं इसलिए उनमें वस्तु स्वरूप का कथन करने की शक्ति स्वयमेव है क्योंकि शब्द और अर्थ का वाच्य वाचक संबंध है। यहां आचार्य श्री तारण स्वामी यह कहना चाहते हैं कि अक्षर, स्वर, व्यंजन जिस अमूर्तीक आत्मा ज्ञान स्वरूप के वाचक हैं, हमें उस तत्त्व की पहिचान अनुभूति करना है तभी अक्षर आदि की सार्थकता है। यदि मूल आत्म स्वभाव का लक्ष्य भूलकर मात्र शब्दावली में ही अटककर रह जायेंगे तो वस्तु तत्त्व की प्राप्ति नहीं होगी। साधन, साध्य की सिद्धि के लिए होता है, जो व्यक्ति साधन को ही साध्य मान ले वह लक्ष्य च्युत होने से साध्य की सिद्धि नहीं कर सकता। इसलिए अत्यंत सावधानीपूर्वक अपने अविनाशी स्वभाव की साधना आराधना कर मुक्ति का मार्ग बनाना है। सद्गुरु तारण स्वामी ने इसी कारण ॐनम: सिद्धम् से प्रारंभ होने वाली शब्दावली का आध्यात्मिक स्वरूप स्पष्ट करके यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा का उद्देश्य मात्र लौकिक स्तर पर ही पूर्ण नहीं हो जाता बल्कि पूर्ण अध्यात्म को प्राप्त करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। यह वास्तविकता है कि शिक्षा वही कार्यकारी और कल्याणकारी है जो अपने आंतरिक लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोगी साधन हो। ॐ नम: सिद्धम् की अपभ्रष्टता का कारण एवं ऐतिहासिक स्मरण प्राचीनकाल से मध्यकाल तक का इतिहास है कि बच्चों को बारहखड़ी का ज्ञान कराते समय सबसे पहले 'ॐ नमः सिद्धम्' कहना होता था। ऐसी परंपरा थी कि सभी धर्म, पंथ, मत और संप्रदाय के बच्चे 'ॐ नमः सिद्धम्' कहकर विद्यारंभ किया करते थे। आगे चलकर इस मंगलमय नमस्कार सूत्र को जैन और बौद्धों से जोड़कर देखा जाने लगा। फलत: अन्य बालक 'ॐ गणेशाय नमः' कहने लगे। यहां तक ही नहीं, ॐ नम: सिद्धम् का उच्चारण विकृत हो गया। पहले 'ओ ना मा सी धम्' हुआ फिर 'ओ ना मा सी धम् बाप पढ़े न हम' हो गया। कातंत्र व्याकरण विमर्श की भूमिका में डा. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने इस संदर्भ में विशेष लिखा है वह दृष्टव्य है "ततो राजस्थान प्रदेशेषु भूरि प्रचारस्यास्य सूत्राणां पाठो जातो अपभ्रष्टः । स च तत्र पाटी इत्याख्ययाख्यायते । गवेषकेणेह गवेष्य प्रबन्धे तत्रोपलब्धस्य पाटी क्रमस्य यथास्थानं विहितः समुल्लेखः । राजस्थान संसक्ते बुंदेलखंडे बालकानामक्षरारम्भ समये"'ओ ना मा सीधम्' इति कातंत्र व्याकरण परंपरा प्रचलितस्य 'ॐ नमः सिद्धम्' इत्यस्यापभष्ट नमस्कारात्मकं मंगलमुच्चार्यते । परतश्चापभ्रष्ट पाठस्यानुपयोगिता विभाव्य लोकतो भ्रष्टः व्याकरणस्यास्य परंपरा बुंदेलखंडे चापभ्रष्टं नमस्कारात्मकमंगलमुपहासतया स्मर्तुमारब्धं'। जिस 'ॐ नमः सिद्धम्' का अत्यधिक प्रचार था उसका पाठ राजस्थान प्रदेश में अपभ्रष्ट हो गया, वहाँ वह पाटी नाम से ख्यात हुआ। कातंत्र व्याकरण विमर्श में इसका उल्लेख किया गया है। राजस्थान से मिला हुआ बुन्देलखण्ड है, वहाँ बालकों को अक्षरारम्भ के समय मंगल वाक्य 'ॐ नमः सिद्धम्' ओ ना मा सी धम् के रूप में अपभ्रष्ट हो गया और कातंत्र व्याकरण की प्रचलित परम्परा नष्ट हो गई, इस कारण लोगों ने इसकी अनुपयोगिता मान ली और आगे चलकर तो यह उपहासता को प्राप्त हो गया।१२३ यह ऐसा क्यों हुआ? इसका कारण बताते हुए विद्वान लेखक डॉ. प्रेमसागर जैन ने लिखा है-"मेरी दृष्टि में ॐ नम: सिद्धम् का ओ ना मा सीध म मुख सौकर्य के कारण हुआ। उच्चारणों की आसानी ने ही समास प्रधान भाषाओं को व्यास प्रधान बनाया। इसे विज्ञान का छात्र भलीभांति जानता है। जहां तक उपहासता *** १२२. वही, ममल पाहुड जी, फूलना ६५, गाथा ९-पृष्ठ २२७ ९० १२३. कातंत्र व्याकरण विमर्श, भूमिका पृ.-ई.

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100