Book Title: Om Namo Siddham
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 99
________________ रजोहरं रमानाथं राजराजेन्द्र सेवितं । रिक्तता रहितं पूर्णं धर्मरीति प्रकाशकं ॥ महिमामय मंत्र: ॐ नम: सिद्धम् महामंत्र है यह, जपाकर जपाकर, ॐनमः सिद्धम् ॐ नमः सिद्धम् । रहे स्मरण में, मंत्र यह निरंतर, ॐ नमः सिद्धम् ॐ नम: सिद्धम् ॥ लोकनाथं महाशांतं लौल्पतारहितं सदा। लंपटैर्न कचित् लभ्यं लिंग रूपादि वर्जितं ॥ वश्येद्रियं वृषाधीशं वाक वादिनि भासकां । विशालाक्षं च विश्वेशं वीतरागं गतक्लमं ।। गुरुदेव तारण को जहर जब पिलाया। अमृत हुआ विष, कर कुछ न पाया ॥ मंत्र की अगम है महिमा ध्याओ शांत होकर, ॐ नमः सिद्धम, ॐ नम: सिद्धम्..... शक्तिमूलं च शक्तिशं धर्मशास्त्र प्रकाशकं । शिवं भवं सदाशीलं शुद्ध शुक्लं प्रभाधरं ॥ पकाराक्षर कर्तारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । सर्वमात्रामयं धीरं वीरं वंदे सदोदयं ॥ गुरुदेव को जब नदी में डुबाया। बने तीन टापू, देव यशोगान गाया ॥ अलौकिक क्षमा के सागर, बोलो थे गुरुवर ॐ नमः सिद्धम, ॐ नम: सिद्धम् .... सनातनं सदानंदं सारासार निरूपकं । सिद्ध शुद्धं सदाबुद्ध पूजितं सीरपाणिना ।। सिद्ध प्रभु जैसे सदाकाल शुद्ध हैं। वैसे ही मेरा आतम, सदा शुद्ध बुद्ध है। स्वानुभूति करते हुए बोलो सभी नर, ॐ नमः सिद्धम्, ॐ नमः सिद्धम् ..... हरिहरं महावीरं हार निहार संनिभं । हितं हिरण्यगर्भ च हीन दीनादि पालकं ॥ क्षमाधारं रमानाथं क्षांति रूपं महाबलं । क्षिप्तरागादि संतानं क्षीणमोहं जगद्गुरूं॥ कहने लगे एक दिन विरऊ ब्रह्मचारी। कौन सा मंत्र है कल्याणकारी ॥ तो बोले थे ज्ञानी तारण तरण गुरुवर, ॐ नमः सिद्धम्, ॐ नम: सिद्धम् ..... * इति चिन्तन ॐनमः सिद्धम् मंत्र आत्मा के सिद्ध स्वरूप का अनुभव कराने वाला विशिष्ट मंत्र है। अपने आत्म स्वरूप का बोध न होने के कारण यह जीव अनादिकाल से संसार में भटक रहा है। एक समय की आत्मानुभूति संसार के बंधनों से छूटने का उपाय है। यह अद्भुत कार्य ॐ नमः सिद्धम् मंत्र के आराधन से होता है। १७६ १७७

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