Book Title: Om Namo Siddham
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Bramhanand Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ इनका निर्माण शक्ति परीक्षण के लिये कराया गया है। कितने ही योद्धा शूरवीर नम: सिद्धम्' के महत्व को ही प्रतिपादित करता है। १३१ आए परंतु इन्हें कोई भी नहीं खोल सका। इन्हें खोलने के लिए अतुलनीय बल श्री पण्डित जयचंद जी छावड़ा कृत द्रव्यसंग्रह की देशवचनिका पद्यानुवाद विक्रम की परम आवश्यकता है। कितने ही वीरों ने शक्ति की परीक्षा के लिए सहित ढूंढारी भाषा में की गई है । टीका के प्रारंभ में पण्डित जी ने 'ॐ नमः अपना बल लगाया परंतु अंत में निराश होकर वे वापिस चले गए। द्वारपालों की सिद्धम्' मंत्र लिखा है। यह टीका ग्रंथ लगभग १६५ वर्ष प्राचीन है व इसका बातों को सुनकर श्रीपाल मन ही मन मुस्कराए। उन्होंने कार्य सिद्धि के लिए मन सम्पादन स्व. पंडित दरबारीलाल जी कोठिया द्वारा किया गया ही मन सिद्ध प्रभु का आराधन किया, तदनंतर किवाड़ों को खोलने के लिए ज्यों ही अपना हाथ लगाया, त्यों ही प्रचंड ध्वनि के साथ वज कपाट खुल गए। जो वहां आचार्य योगीन्दुदेव कृत योगसार ग्रंथ का उल्था स्वानुभव दर्पण के नाम पहरेदार नियुक्त थे उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। कुछ पहरेदार श्रीपाल का से प्रकाशित हो गया है, इसकी वि.संवत् १६७३ की हस्त लिखित प्रति फुटेरा सम्मान करने वहीं रुके रहे और कुछ अन्य ने राजा को इस बात की सूचना दी। जिला दमोह से प्राप्त हुई है, इस प्रति का प्रारंभ 'ॐ नमः सिद्धम्' मंत्र से हुआ उन्होंने राजा से निवेदन किया 'हे महाराज ! एक अत्यंत रूपवान, गुणवान एवं अनेक उत्तमोत्तम शुभ लक्षणों से युक्त महापुरुष सहस्रकूट चैत्यालय के द्वार पर वर्तमान में भी श्री दिगम्बर जैन टोडरमल सिद्धान्त महाविद्यालय के प्राचार्य आया है। उस समय हम लोग वहां पहरा देने के लिए नियुक्त थे। पहले तो उसने पंडित रतनचंद भारिल्ल द्वारा 'संस्कार' नामक पुस्तक लिखी गई है, उसके मुख हम लोगों से किवाड़ बंद रहने का कारण पूछा फिर हमारे उत्तर से प्रसन्न होकर पृष्ठ पर श्री भारिल्ल जी ने शिक्षण कक्षा में बैठे हुए बच्चों को शिक्षक द्वारा ब्लैक "ॐ नमः सिद्धम्" कहते हुए द्वार पर हाथ लगाया एवं अपने हाथ के स्पर्श मात्र बोर्ड पर ॐनमः सिद्धम् लिखते और बच्चों को पढ़ाते हुए बताया है। इससे भी से वज़ कपाट को खोल दिया। १२९ प्राचीन समय में 'ॐ नम: सिद्धम्' की शिक्षण व्यवस्था का महत्व प्रकाशित इनके अतिरिक्त कुछ ऐतिहासिक स्मरण हैं जो 'ॐ नमः सिद्धम्' के महत्व होता है।१३४ को प्रतिपादित करते हैं, जैसे तारण तरण जैन समाज में झंझाभक्ति के लिए गाये जाने वाले पुराने १२५ महाराष्ट्र प्रांत में वर्णमाला तथा अंकलिपि का प्रकाशन हो रहा है उन सभी भजनों का प्रकाशन सिंगोड़ी निवासी पंडित श्री मुन्नालाल जी गोयलीय ने 'समय अंकों में सर्वप्रथम 'ॐ नम: सिद्धम्' मंत्र का उल्लेख किया गया है। इस पवित्र । विभाग जैन तार भजनावली' के नाम से कराया था। इस कृति के प्रारंभ में भी 'ॐ मंत्र के स्मरण के साथ ही वर्णमाला और अंकलिपि को प्रारंभ करने की प्रेरणा दी। नम: सिद्धम्' मंत्र को विराजित किया गया है। यह प्रकाशन वि.सं.१९८० में हुआ गई है। १३० था। जैनाचार्य श्री वसुनंदि महाराज द्वारा सृजित तत्त्व विचार सार नामक ग्रंथ के मध्य एशिया की खुदाई में मिले साहित्य में एक 'सिद्धि रस्तु' ग्रंथ भी है। आद्य वक्तव्य का प्रारंभ मुनि मार्दव सागर जी ने ॐ नम: सिद्धम् से ही किया है। यह वहाँ के बौद्ध मठों और जैन आश्रमों में बिना किसी धर्म और सम्प्रदाय के यह ग्रंथ दिगंबर जैन समाज छिंदवाड़ा द्वारा प्रकाशित किया गया है। बाबू वीरसिंह भेदभाव के पढ़ाया जाता था। इस ग्रंथ का नाम 'सिद्धिरस्तु 'सिद्ध प्रकरण' तथा । जैनी दिगम्बर जैन पुस्तकालय इटावा से वीर सम्वत् २४३३ में प्रकाशित रक्षाबंधन 'सिद्ध पिटक' केवल इसलिये पड़ा कि इसका शुभारंभ ' ॐ नम: सिद्धम्' से कथा के मंगलाचरण-वन्दों वीर जिनेश पद .... के पूर्व-'ओं नम: सिद्धम्' मंत्र होता था। यहाँ तक कि वर्णमाला को भी सिद्ध वर्णमाला कहा जाने लगा। आगे लिखा गया है। ॐ नम: सिद्धम्' मंत्र के पश्चात् कथा का प्रारंभ हुआ है। १३५ चलकर विश्व भर में लोकप्रिय कातंत्र व्याकरण का पहला सूत्र ही सिद्धो वर्ण समाम्नाय: है इसकी प्रसिद्धि हुई। वर्ण समाम्नाय के साथ जुड़ा सिद्ध शब्द 'ॐ १३१. कातंत्र व्याकरण का विदेशों में प्रचार, जैन हितैषी, श्रीपं. नाथूराम प्रेमी संपादित, पृष्ठ ६८-७० १३२. गणेशप्रसाद वर्णी ग्रंथमाला वाराणसी-१६वां पुष्प, सन् १९६६ १२९. कोटिभट श्रीपाल, लेखक स्व. पंडित परिमल्लजी, जैन पुस्तक भवन १३३. स्वानुभव दर्पण, वि. संवत् १६७३ १६१/१ महात्मा गांधी रोड, कलकत्ता प्रकाशन, पृ.७४ १३४. संस्कार, पं. रतनचंद भारिल्ल,जयपुर १३०. नवनीत वर्णमाला पहाड़ा एवं अंकलिपि, महाराष्ट्र प्रकाशन। १३५. रक्षाबंधन कथा, दि. जैन पुस्तकालय इटावा, वीर संवत् २४३३ ९५

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100