Book Title: Om Namo Siddham
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 39
________________ शिक्षा दी जाती थी। इसके बाद ही वर्णमाला का नंबर आता था। प्रारंभिक शिक्षा का आदि सूत्र होने के कारण कालांतर में यह शब्द विद्यारंभ का पर्यायवाची बन गया और अपभ्रष्ट रूप में लोग इसे 'ओ ना मा सीध म' या ओ ना मा सी' कहने लगे कालांतर में इसका प्रयोग व्यंग्यार्थ में होने लगा। जो बालक किसी भी कारण से पढ़ नहीं पाते, वे कहने लगते-'ओ ना मा सी धम-बाप पढे न हम' |" 'ओ ना मा सीध म' अर्थात् 'ॐ नम: सिद्धम्' से प्रारंभ करके लौकिक । विद्या सिखाने से पूर्व बच्चों के संस्कारों में अध्यात्म विद्या का बीजारोपण किया। जाता था क्योंकि अध्यात्म विद्या ही व्यक्ति को सच्चे मार्ग पर लगाती है और अहं ब्रह्मास्मि, तत्त्वमसि, अयम् आत्मा ब्रह्म' यह बोध होना ही समूची शिक्षा का सार है। जैन दर्शन का अध्यात्म या वैदिक संस्कृति का सार तथा अन्य सभी दर्शन, मत, पंथ और धर्म गुरु यही कह रहे हैं कि अपने स्वरूप को जानना ही। संपूर्ण विद्या का प्रयोजन है। यदि अपने को जान लिया तो सभी शिक्षा कार्यकारी है और अपने को नहीं जाना तो सारा ज्ञान कुज्ञान कहलाता है, यही अविद्या है। कहीं कुज्ञान ही अंधकार के रूप में अंतर में न छाया रहे यही कारण है कि बचपन से ही सर्वप्रथम 'सिद्धम्' का बोध कराया जाता रहा है, तत्पश्चात् पाटी आदि की शिक्षा दी जाती रही जिससे संपूर्ण शिक्षा अध्यात्म का रूप धारण कर ले, और यह अनुभव भी किया गया, देखा गया कि उस प्राचीन शिक्षा में जो मंत्र के मंगल स्मरण सहित होती थी, उसका परिणाम व्यक्तिगत जीवन,पारिवारिक और राष्ट्रीय क्षेत्र में भी उन्नत रहा। पाटी' शब्द किसी विषय की विधिवत् शिक्षा या पाठ के अनुक्रम के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह संस्कृत भाषा का स्त्रीलिंग शब्द है। इसका निकटतम पर्याय 'परिपाटी' माना जा सकता है। ज्योतिर्विद एवं गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपने ग्रंथ 'लीलावती' को 'पाटी गणित' के रूप में ही संबोधित किया है। स्पष्ट है कि पाटी शब्द भाषा और गणित के प्रारंभिक पाठों के लिए प्रयुक्त होता था। जैसी कि धारणा प्रचलित है कि लकड़ी की काली तख्तियों के कारण पाटी शब्द प्रचार में आया यह धारणा भ्रमपूर्ण है। हां, यह संभव है कि बालकों से 'पाटियां' लकड़ी। की तख्तियों पर ही लिखवाई जाती थीं, इस कारण तख्तियां ही 'पाटी' बन गई। 'पाटी' या 'पाटियां' जिनका संबंध मात्र भाषा ज्ञान से है, वे संख्या में केवल चार हैं इसलिए 'चारों पाटी' शब्द प्रचलन में आया है। ३८. वही, पृष्ठ १०८ वे 'चार पाटियां' इस प्रकार हैं - पहली पाटी ओ ना मा सीधं ॥ अ आ इिडी उ ऊ॥ रे रै ले लै ऐऐ। ओ आ ऊ अंगा हा॥ का खा गा घंना ॥ चा छा जा झं ना ॥ टाठा डा ढंना ॥ता था दा धं ना ।। पा फा वा भं मा ।। जा रा ला वा ॥ सं षे सा हा लं छे । सिद्धो वरना ।। समामनाया ॥ चत्रो चत्रोदासा ॥ दाऊ सोरो॥ दसैं समाना ॥ तेषं दुत्या वरनो॥ निसि निसि बरनो । पूरभोरस्या ॥ पारो दुरगा ॥ सारो बरना । बरजो नामी ॥ इिकरादैनी। संधि करानी॥ कादैनी विंज्यानामी॥तेवर को पंचीपंचा। बरगानामी ॥ परथम दुत्या । सकुचहिचां ॥ घोषाघोषुपतोर नो। अनुनासीषा । नैगरनामा ॥ अंतूस्थां जारा लावा।। ऊषमान सकुचा हॉ॥ आ ही ती विसारोजन्या ।। अषै ही ती जम्यामोल्या ।। पफड़ीती पद्मान्या ॥ अनंतन सोर ॥ पूरभोपलीरथो ॥ पाला है पाली पदं । विज्यानामीसुरं पूरं ।। बरनऐनै तूं ॥ अनंत कर मैलं ॥ विसलैंषजैत ॥ लिषौपंचोरा ।। दुरगन संधी॥ एती संधी सूतरता ॥ परथम संधि समापता ॥ दूसरी पाटी समानिस बरनो॥दुरगमवंती॥ प्रहास लोपे। आबरन ही बरनयो॥ ऐवरनै ऐ॥ ओ बरनै वो॥री बरनै आलू ॥ ती बरनै कालू ॥ ऐकारे ऐकारे चा । ओकारे ओकारे चा ॥ ऐबरनै जिम्मिसबरनै ॥ निचपर लुप्या ॥ बंभू बरना ॥ रिव्विर बरना । लिंम्मिर बरना ॥ ऐजै आजू ।। वो वै आवू ॥ आधीमान जमाना लोपे॥ पाल पदन्ते ॥ नामा लोपे॥ इिसिविरि करते॥ लुकंभकारे॥ ना विंजाने॥ सुरान संधी॥ एतौ संधौ सूतरता ॥ दुरती संधि समापता॥ तीसरी पाटी ओदंता अनि अनि पंता॥ सिरविर करता ॥ दूरवचनामीनौं। गुरबच नामी नौं । वौहवचनामीनौं । आन मान पतिस्टॉ चा ॥ ऐती संधौ सूतरता ॥ तिरती संधि समापता ।। चौथी पाटी बरग परथमा पूजते ॥ सोरा घोषा बातासू ॥ आंनतिरथिया आंनं ॥ पंचै पंचभ्यामं । सोरतिरथिया अतनेवा।। बरग परथमा। भऐ सुषारी लेवा ।। सोर जोर पिचकारी नेवा ।। त्रभू आऐ कालं ॥ पारा रूपं ॥ जगत सरूपं ।। टंकारे लाचट वरगेषु ।। चनुछे अनुना ।। पनुफेगनुना ॥ रसो पढ़ाया ।। जसो पढ़ाया ।। सोरं देवी लेवंता । तथेसुकारे । पफेसुकारे । लीलं झाझं झझन सुकारे ॥ घुन गए षरग सनीचरु वारे। डिढंपुलिस्टं कारेषु । मौन समारे विंजाने || बरगा सु बरगा। पंच महुरवा ।। एती संधौ सूतरता ॥ चतुरती संधि समापता ॥ ५७

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