Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 494
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिण वा गारस्थिएण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्टु दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय - अणुवत्तिय परिवेढिय-परिवेढिय परिजविय - परिजविय ओभासिय - ओभासिय जाय, जायंतं वा साइज्जइ ॥९॥ जे भिक्खू आगंतागारे वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउस्थिरहिं वा गारत्थि एहिं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा rass or दिनमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय - अणुवत्तिय, परिवेढियपरिवेढिय, परिजविय - परिजविय; ओभासिय- ओभासिय जायइ जायंत वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू आगंतागारे वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अण्णउत्थिणीए वा गारत्थिणीए वा असणं वा पाण वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्टु दिज्नमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय - अणुवत्तिय परिवेढिय-परिवेदिय परिजविय - परिजविय अभासिय - ओभासिय जायइ जायंतं वा साइज्जइ ॥ ११॥ जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियासहेसु वा अण्णउत्थिणीहि वा गारत्थिणीहिं वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहदु दिज्जमाणं षडिसेहेत्ता ताओ अणुवत्तिय - अणुवत्तिय परिवेढिय - परिवेढिय परिजविय - परिजविय अभासिय- आसासिय जायइ जायंनं वा साइज्जइ ॥ १२ ॥ जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविट्ठे पडियाइक्खिए समाणे दोच्चपि तमेव कुलं अणुप्पविसइ अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ || १३|| जे भिक्खू संखडिपलोयणार असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ॥ १४ ॥ जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठे समाणे परं तिघरंतराओ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहरं आहददु दिज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गा वा साइज्जइ ॥ १५ ॥ जे भिक्खू अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा आमज्जंतं वा पमज्जेत वा साइज्जइ ||१६|| जे भिक्खू अप्पणो पाए संवाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संवार्हेतं वा पमितं वा साइज्जइ ॥१७॥ २ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546