Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 536
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अष्टादशोदेशकः॥ जे भिक्खू अणहाए णावं दुरूहइ दूरुहंतं वा साइज्जइ ॥१॥ जे भिक्खू णावं किणइ किणावेइ कीयं आहटु दिज्जमाणं दुरूहइ दुरूहंत वा साइज्जइ ॥२॥ एवं जो चउद्दसमे उद्देसे पडिग्गहगमो सो णेयव्वो जाव अच्छेज्ज अणिसिहं अभिइडमाहटु दिज्जमाणं दुरूहइ दूरुहंतं वा साइज्जइ ॥३-५॥ जे भिक्ख थलाओ नावं जले ओक्कसावेइ ओक्कसावेत वा साइज्जइ ॥६॥ जे भिक्खू जलाओ नावं थले उकसावेइ उकसावेतं वा साइज्जइ ॥७॥ जे भिक्खू पुणं णावं उस्सिंचइ उस्सिंचंतं वा साइज्जइ ॥८॥ जे भिक्खू विखुण्णं णावं उप्पिलावेइ उप्पिलावेंतं वा साइज्छइ ॥९॥ जे भिक्खू पडिणावियं कटु णावाए दुरूहइ दुरूहतं वा साइज्जइ ॥१०॥ जे भिक्खू उड्ढगामिणि वा णावं अहोगामिणिं वा णावं दूरूहइ दुरूहतं या साइज्जइ ॥११॥ जे भिक्खू जोयणवेलागामिणिं वा अद्धजोयणवेलागामिणि वा णावं दूरूहा दूरूहंतं वा साइज्जइ ॥१२॥ जे भिक्खू णावं आकसावेइ खेवावेइ रज्जुणा कटेणं वा कहढावेइ आक्सावंत षा खेवावंतं वा कइढावंतं वा साइज्जइ ॥१३॥ जे भिक्खू णावं अलित्तएण वा दंडेण वा पप्फिडिएण वा सेण वा वलेण को बाहेइ वाहेंतं वा साइज्जइ ॥१४॥ जे भिक्खू णावाउदगमायणेण वा पडिग्गहेण वा मत्तएण वा णावाउस्सिंचणेण वा गावं उस्सिचइ उस्सिचंतं वा साइज्जइ ॥१५॥ जे भिक्खू नावं उत्तिगेण उदगं आसवमाणं उवरुवरि च कज्जलावेमाणं पेहाए हत्येण वा पारण वा आसत्थपत्तेण ग कुसपत्तेण वा मट्टियाए वा चेलेण वा चेलकगणेण वा पडिपिहेइ पडिपिहेंतं वा साइज्जइ । १६॥ जे भिक्खू णावागओ णावागयस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं पा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥१७॥ For Private and Personal Use Only

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