Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 545
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चाउम्मासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडि. सेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पविखया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअहें सहेउं सकारण अहीणमइरित्तं तेण परं अड्ढपंचमा मासा ।।४३॥ अड्ढपंचममासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारहाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया ओरावणा आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरितं तेण परं पंच मासा ॥४४॥ पंचमासियं परिहारहाणं पट्टविए अणगारे तरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्त तेण परं अड्ढछट्ठा मासा ॥४५॥ ____ अद्धछट्ठमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा पक्खिया आरोवणा आइमज्झावसाणे सअटुं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं छम्मासा ॥४६॥ ॥ निसीहज्झयणे वीसइमो उद्देसो समत्तो ॥२०॥ ॥इति निशीथसूत्रस्य मूलपाठः समाप्तः ॥ அருருருருருருருகாற்றை மாற்ற வருமா For Private and Personal Use Only

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