Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 529
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे भिक्खू सचित्तइपट्ठियं अंब वा अंबपेसियं वा अंबभित्तं वा अंबसालगं वा अंबचोयगं वा भुंजइ मुंजत वा साइज्जइ ॥११॥ जे भिक्खू सचित्तपइडियं अंब वा अंबपेसियं वा अंबभित्तं वा अंबसालगं वा अंबचोयग वा विहंसइ विडंसंत वा साइज्जइ ॥१२।।। जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज्ज वा आमज्जातं वा पमज्जातं साइज्जइ ॥१३॥ एवं तइयउद्देसगमओ णेयव्यो जाव गामाणुगाम दूइज्जमाणे अण्णउत्थिरण वा गारथिएण वा अप्पणो सीसदुवारियं करावेइ करावेत वा साइज्जइ ॥१४-६८॥ ।उच्चारप्रस्रवणपरिष्ठापनप्रकरणम् ।। जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेमु वा परियावसहेसु वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिवेत वा साइज्जइ ॥६९॥ जे भिक्खू उज्जाणंसि वा उज्जाणगिहंसि वा उज्जाणसालंसि वा निज्जाणंसि वा निज्जाणगिहंसि वा निज्जाणसालंसि वा उच्चारपासवर्ण परिहवेइ परिहवेतं वा साहज्जइ ॥७०॥ जे भिक्खू अट्टसि वा अट्टालियंसि वा चरियसि वा पागारंसि वा दारंसि वा गोपुरंसि वा उच्चारपासवणं परिढवेइ परिहवेंतं वा साइज्जई ॥७१॥ जे भिक्खू दगंसि वा दगमग्गंसि वा दगपहंसि वा दगतीरंसि वा दगडाणंसि वा उच्चारपासवणं परिद्ववेइ परिहवेंतं वा साइज्जइ ॥७२॥ जे भिक्खू सुन्नगिहंसि वा सुन्नसालंसि वा भिन्नगिहंसि वा भिन्नसालंसि वा कूडागारंसि वा कोहागारंसि वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिहवेंतं वा साइज्जइ ॥७३॥ जे भिक्खू तणगिर्हसि वा तणसालंसि वा तुसगिर्हसि वा तुससालंसि वा भुसगिहंसि वा भुससालंसि वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिडवेतं वा साइज्जइ ॥७४॥ जे भिक्खू जाणगिहंसि वा जाणसालंसि वा जुग्गगिहंसि वा जुम्गसालंसि वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिहवेतं वा साइज्जइ ॥७५॥ जे भिक्खू पणियगिहंसि वा पणियसालंसि वा कुवियगिहंसि वा कुवियसालंसि वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिहवेंतं वा साइज्जइ ।।७६॥ जे भिक्खू गोणगिहंसि वा गोणसालंसि वा महाकुलंसि वा महागिहंसि वा उच्चारपासवणं परिहवेइ परिद्ववेतं वा साइज्जइ ॥७७॥ । इति-उच्चारप्रस्रवण-परिष्ठापनप्रकरणम् । For Private and Personal Use Only

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