Book Title: Nishith Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 510
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अष्टमोद्देशकः ॥ जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावससु वा एगो एत्थिीए सद्धिं विहारं वा करेइ सज्झायं वा करेइ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेइ, उच्चारं वा पासवर्णं वा परिद्ववेद, अण्णयरं वा अणारियं निरं मेहुण अस्समणपाओगे कहं कहे कहतं वा साइज्जइ ॥१॥ जे भिक्खू उज्जाणंसि वा० ॥ २ ॥ जे भिक्खू असिवा || ३ || जे भिक्खू दगंसि वा० ॥ ४ ॥ जे भिक्खू सुष्ण गिर्हसि वा० ॥ ५ ॥ जे भिक्खू तणगिहंसि वा० ॥ ६ ॥ जे भिक्खु जाणसालंसि वा० || ७ || जे भिक्खू पणियसालंसि बा० ॥ ८ ॥ जे भिक्खू गोणसालंसि वा० ॥ ९ ॥ जे भिक्खू राओ वा वियाले वा इत्थीमज्झगए इत्थमंसते इत्थीपरिवुडे अपरिमाणयाए कहं कहे कहेंतं वा साइज्जइ ॥ १०॥ जे भिक्खू सगणिच्चियाए वा परगणिच्चियाए वा णिगंथीए सद्धिं गामाणुगामं दृइज्जमाणे पुरओ गच्छमाणे पिट्ठओ रीयमाणे ओहयमण संकप्पे चिंतासोयसागरसंप कर पल्हत्थमुहे अज्झाणो गए विहारं वा करेइ सज्झायं वा करे, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेइ, उच्चारं वा पासवणं वा परिद्ववेइ, अण्णयरं वा अणारियं निठुरं मेहुणं असमणपाओग्गं कहं कहेइ कहतं वा साइज्जइ ॥११॥ जे भिक्खु णाय वा अणायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अंतो उवस्सयस अर्द्ध वा राई कसिणं वा राई संवसावेइ संवसावेंतं वा साइज्जइ ॥ १२॥ जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा राई कसिणं वा राई संवासावेइ तं पहुच्च निक्खमइ वा पविसर वा निक्खमंतं वा पत्रिसंतं वा साइज्जइ ॥ १३ ॥ जे भिक्खू तं न पडियाइक्खेइ न पडियाइक्खतं वा साइज्जइ ॥ १४॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं समवासु वा पिंडनियरेसु वा इंदम वा खंदमहेसु वा रुद्दमहेसु वा मुगुंदमहेसु वा भूयमहेसु वा जक्खमहेसु वा णागमहेसु वा धूममहेसु वा चेइयमहेसु वा रुक्खमहेसु वा गिरिमहेसु वा दरिमहेसु वा अगडम वा तडागमहेसु वा दहमहेसु वा णईमहेसु वा सरमहेसु वा सागरमहेसु वा आगरमहेसु वा अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा डिग्गाहेइ पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ||१५|| १ For Private and Personal Use Only

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