Book Title: Niryukti Panchak
Author(s): Bhadrabahuswami, Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण श्वेताम्बर पररा में महार-वा: अज भी ग्यारह अंगों के रूप में सुरक्षित है। दिगम्बर-परम्पर. के अनुसार उन आगन संधों का कालान्तर में लेप हो गया इसलिए नियुक्ति-साहित्य की विशाल श्रुत राशि केवल श्वेताम्र पारा में ही मार नियुक्ति का स्वरूप जैन आगनों से या ग्रंथ तुटत चार प्रकार के है नियुतिः. भाग्य. निरीक न्विन्ति प्राचीनतग पाद्ध व्याल्य है । भद्रबाहु ने आवश्यकनियुवित्त (गा ८८) में नियुजित का निरुक्त इस प्रकार किया है-'निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ निज्जुत्ती' जिसके द्वारा सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय होता है, वह नियुक्ति है। निश्चय रूप से सम्यग् अर्थ का निर्णय करना तथा सूत्र में ही परस्पर संबद्ध अर्थ को प्रकट करना निविर का उद्देश्य है। आचार्य हरिभद्र के अनुसार क्रिया. करक भेद और पर्यायवाची शब्दों द्वारा पाब्द की व्याख्या करना या अर्थ प्रकट करना निरुक्ति/नियुकित है। जर्मन विद्वान शान्टियर के अनुसार नियुक्तिम प्रधान रह से संबन्धिरः ग्रंथ के इंडेक्स का कार्य करती हैं तथा सभी विस्तार घटनावलियों का संक्षा मे उल्लेख करती हैं। व्याख्या के सदर्भ में अनुगम दो प्रकार का होता है -सूत्र-अनुगन और नियुक्ति-अनुगम : नियुक्ति-अनुगम तीन प्रकार का होता है १ निक्षेपनियुक्ति-अनुगम २. उपोद्घानियुक्ति-अनुगम ३ सूत्रशिकनियुक्ति-अनुगम।' प्रत्येक शब्द के कई अर्थ होते हैं। उन्में कौन सा अर्थ प्रासंगिक है, इसका नान निक्षेपनियुक्ति-अनुगम से कराया जाता है। उपोद्घातनियुक्ति-आनुगन में छलतीस प्रकार से कान या विषय की मनांस की जाती है। तत्प्प्रचार सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति-अनगम के द्वारा नियुक्तिकार सूत्रात शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। नियुक्तिकार मूलग्रंथ के प्रत्येक शब्द की व्याख्या न कर केवल विशेष शब्दों की ही व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। १ (क) विभा १०८६: जं निच्या जूता सुत्ते अत्धा भीए वन'या । तेणेयं निकुत्ती. निगुत्त्याभिहाणाओ। (ख) सुटी ५.१ योजनं युक्ति: अर्थवटा निश्चयेनधिक्येन वा युक्तिनियनित: सम्यगर्थप्रकटनम । नियुक्ताना वा सूत्रेाजे परस्परसम्बद्वानाम भाविभावन मुक्तशब्दमोगान्निक्तिः । (ग आवनही प. १०० सूत्रामा वरपर निजन संबंधनं नियंतितः । घि अभिटी न. ४; नि आधिज्ये योजनं मुक्तिः सूत्रार्थयोयोमो नित्यमवरिथल एवास्ते वाच्य वाचकत्तयेत्यर्थ अधिका योस्न नियुक्तिस्त्र्यते नियता नचिता वा योजनेति । २. आव्हाटी ग ३६३। } Uttaridhyayana sutra. preface,page 50.51 । ४. विमा ९७२. कन्टुत्ती तेविगमा, मनोव्यपगत्तवक्ला। ५ भिा ९७३, ५:५४

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